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मदागास्कार टापू में हत्याकाण्ड।

उन लोगों का प्रधान उद्देश्य था लूटना। उन लोगों ने समझा था कि लूट में बहुत सोना और जवाहरात मिलेंगे। वे लोग घटनाक्रम से एक दम शैतानी से मत्त हो उठे। कुछ श्रागे बढकर उन्होंने देखा कि सिर्फ बारह तेरह घर की एक बस्ती है। क्या इस देश का यही शहर है? हा, सभी के मुँह फीके पड़ गये। तथापि एकदम हताश न होकर उन लोगों ने स्थिर किया कि एक बार खोजकर देखना चाहिए कि शहर कहाँ है। किन्तु शहर किस तरफ है, इसका पता कैसे लगेगा? यह बात किसीसे पूछने का भी साहस नहीं होता था, क्योंकि बस्ती वाले सो रहे थे। इस सोच विचार में इधर-उधर घूमते फिरते उन लोगों ने एक पेड़ के नीचे एक पशु बँधा हुआ देखा। इसी पशु को उन लोगों ने पथ-प्रदर्शक बनाने का निश्चय किया। "पशु छोड़ देने पर यदि वह छोटी बस्ती की ओर जायगा तब तो शहर का पता लगाना कठिन होगा किन्तु यदि वह शहर का होगा तो शहर ही की ओर जायगा। तब उसके पीछे पीछे हम लोग शहर में सहज ही पहुँच जायँगे। पीछे जो होगा देखा जायगा"। यह सोचकर उन लोगों ने पशु का बन्धन काट दिया। बन्धन कटते ही पशु शहर की ओर चला। ये लोग भी उसके पीछे पीछे चले। थोड़ी देर में वे लोग उसके साथ साथ शहर में पहुँच गये। उन्होंने शहर में घूमकर देखा, प्रायः दो सौ घर की आबादी थी। किसी घर में परिवार की संख्या कुछ अधिक थी। घर सभी फूस के थे।

शहर वाले सभी सो रहे थे। सर्वत्र निद्रादेवी की शान्त निःस्तब्धता विराज़मान थी। शहर के निवासी बेचारे स्वप्न में भी न जानते थे कि सभ्यताभिमानी दुरन्त नीचाशय मनुष्यों