मुझसे बार बार आग्रह करने लगे। मैं उन लोगों को रोकने की चेष्टा करने लगा। किन्तु इससे असन्तुष्ट हो वे सबके। सब मुझसे बिगड़ गये, और कहने लगे, "तुम हमारे रोकने वाले कौन?" यह कह कर एक एक कर सभी चले गये । मेरे बहुत कहने-सुनने पर एक नाविक और एक लड़का मेरे साथ नाव पर रहा।
जब वे नाविक मेरे आदेश की उपेक्षा कर जाने लगे तब उन्हें मैंने कितना ही समझाया कि तुम्हीं लोगों के जीवन और शुभाशुभ पर जहाज़ का शुभाशुभ अवलम्बित है। तुम लोगों को इस उजड्डपन के लिए यहाँ और परलोक की अदालत में धर्मराज के सामने जवाबदेही करनी होगी। किन्तु कौन किसकी सुनता है? वे लोग शहर में जाने के लिए क्रुद्ध हो उठे थे। मेरा कहना अरण्य-रोदन के समान हुआ। वे इतना कह गये कि "आप रुष्ट न हो, हम लोग अभी एक आध घंटे में लौट आते हैं।" मैंने बड़ी स्पष्टता के साथ उनसे कह दिया, "जाते हो तो जाओ। किन्तु मेरी बात को अच्छी तरह याद रखना, तुम लोगों में कितनों ही की दशा टाम जेफ़्री की भाँति होगी।" जो लोग किसी तरह बच आवेंगे उनकी प्रतीक्षा करके हम लोग बैठ रहे।
वे सबके सब चले गये। यद्यपि यह विषम साहसिक कर्म पागलपन के सिवा और क्या कहा जा सकता है तथापि वे लोग बड़ी सावधानी के साथ जाने लगे। ऐसे साहसी और हथियारबन्द लोग प्रायः बहुत कम ऐसे बुरे काम में प्रवृत्त होते हैं। उन लोगों के साथ बन्दूक़, बर्छा, तलवार, कुल्हाड़ी और बम आदि सभी कुछ यथेष्ट परिमाण में थे।