प्रत्यागमन की आशा से दो दिन जहाज़ को रोक रक्खा और उसको लौट आने के लिए अनेक प्रकार के संकेत किये। किन्तु संकेत का कोई उत्तर न पाकर हम लोगों ने उसकी आशा छोड़ दी।
किन्तु उसकी कोई खबर न पाकर मैं स्थिर न रह सका। इस घटना के तीन दिन बाद मैं अँधेरे में अपने बदन को भली भाँति ढक कर किनारे पर उतरा और उन असभ्य लोगों की खोज में चला। मेरे साथ कुछ नाविक भी चले। मैं अच्छा काम करने जाकर फिर एक भारी अनर्थ कर बैठा।
मेरे साथ क़रीब २०, २२ आदमी बड़े बलिष्ठ थे। दस बजे रात को हम लोग चुपचाप स्थल में उतरे और साथ के लोगों को दो भागों में बाँटकर एक के परिचालन का भार मैने लिया तथा दूसरे भाग का भार जहाज़ के माँझी ने लिया। हम लोगों ने चन्द्रमा के प्रकाश में देखा कि कुल बत्तीस आदमी हम लोगों की गोली से मर कर समुद्र के किनारे पड़े थे। घायलों को शायद द्वीप-निवासी उठाकर ले गये थे।
मैंने यहीं से जहाज़ में लौट चलने का प्रस्ताव किया किन्तु माँझी को यह प्रस्ताव स्वीकृत न हुआ। उसने कहा कि "मैं एक बार इन नारकी कुत्तों (इसी तरह अवज्ञा के साथ वह बोला) के शहर में जाऊँगा और वहाँ जाकर उन का धन लूट लाऊँगा। वहाँ जाने से कदाचित् खोये हुए नाविक टाम जेफ्री का भी कुछ पता लग जाय।" उसने मुझसे भी चलने के लिए अनुरोध किया। किन्तु मैं उसके इस अति साहसिक काम का अनुमोदन न कर सका। मैं उसी घड़ी जहाज़ में लौट आया। मेरे दल के लोग जाने के लिए