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मदागास्कार टापू में हत्याकाण्ड।

किन्तु नाव किनारे भिड़ते न भिड़ते हमारे साथी लोग नाव पर चढ़ने के लिए पानी में धँस पड़े। उनके पीछे पीछे तीन चार सौ आदमी दौड़े चले आ रहे थे। हम लोगों के श्रादमी गिनती में कुल नौ थे, जिनके साथ सिर्फ पाँच बन्दूक़ें थीं।

हम लोग बड़े कष्ट से सात मनुष्यों को नाव पर चढ़ा सके। उनमें तीन व्यक्ति बहुत घायल थे। किन्तु नाव पर आजाने पर भी छुटकारा नहीं हुआ। वहाँ के निवासी लोग अँधाधुन्ध बाण बरसा रहे थे। दैवयोग से नाव में कई तख्ते और बेञ्च थीं। उन्हीं को खड़ा कर कर के हम लोग उनकी आड़ में छिप रहे। द्वीप-निवासियों का जैसा अचूक बाण चलता था उससे यदि दिन का समय होता तो हम लोगों के शरीर का कोई अंश सामने पड़ जाने पर फिर उनके हाथ से बचना मुश्किल था। हम लोगों के भाग्य से उस समय रात थी। चाँदनी रात में तख्तों के छिद्र से देखा कि वे लोग किनारे खड़े होकर हम लोगों पर बाण बरसा रहे हैं। हम लोगों ने बन्दूक़ें भर कर एक साथ गोली चलाईं। उन लोगों की चिल्लाहट से मालूम हुआ कि कई आदमी घायल हुए हैं। किन्तु वे लोग बन्दूक की विशेष परवा न करके सबके सब पाँत बाँध कर प्रभात की अपेक्षा से खड़े रहे। कारण यह कि दिन के उजेले में वे लोग अच्छी तरह लक्ष्य करके हम लोगों पर बाण चलावेंगे।

हम लोग उनके डर से बड़े दुखी हुए। न हम लोग लङ्गर उठा सकते थे, न पाल तान सकते थे और न लग्गे से नाव ही खे सकते थे। ये सब काम करने के लिए खड़ा होना पड़ेगा, और वे लोग जिसे खड़ा देखेंगे उसे बाण से मार गिरावेंगे। अब हम लोगों ने अपने जहाज़ वाले साथियों को विपत्ति