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राबिन्सन क्रूसो।


एक तरह के वृक्ष की तीन डालें काट कर एक जगह गाड़ देते थे। यदि अपर पक्ष के लोग इस सन्धि से सम्मत होते थे तो वे भी उनके सामने इसी तरह तीन वृक्ष-शाखाएँ गाड़ देते थे। दोनों दलों के सन्धिस्थापन के बीच की जगह वाणिज्य-व्यवहार और बात-चीत के लिए निर्दिष्ट होती थी। उस मध्यवर्ती स्थान में यदि कोई जाना चाहता था तो उसे निरस्त्र होकर जाना पड़ता था।

एक दिन सन्ध्या-समय हम लोग स्थल में उतर पड़े। वहाँ के रहने वालों ने चारों ओर से आकर हम लोगों को घेर लिया। किन्तु उन लोगों ने कोई प्रतिकूल आचरण न कर बडे शान्त भाव से हम लोगों के साथ सन्धि का बर्ताव किया। हम लोगों ने भी सन्धि-शाखा गाड़ कर के वहीं रात बिताने की इच्छा से कई तम्बू खड़े किये।

सभी लोग निश्चिन्त हो कर सो रहे। किन्तु न मालूम मुझे नींद क्यों न आई। तब मैं नाव पर गया और नाव के ऊपर पेड़ के डाल-पत्तों का एक छप्पर छा दिया। उसके नीचे पाल बिछा कर मैं सो रहा। नाव की रक्षा के लिए दो आदमी और भी नाव पर थे। मैंने नाव को किनारे से ज़रा हटा कर लंगर डाल दिया।

दो बजे रात को हम लोगों के साथी खूब ज़ोर से चिल्ला कर नाव को किनारे लगाने के लिए हम लोगों के नाम ले ले कर पुकारने लगे। इसके साथ साथ पाँच बार बन्दूक़ की आवाज़ सुनाई दी। कुछ कारण न समझने पर भी हम लोगों ने झट पट नाव को किनारे लगा दिया और तीन बन्दूक़ें लेकर हम लोग उनकी सहायता के लिए प्रस्तुत हुए।