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उपनिवेश में समाज और धर्म-संस्थापन।


कर दी। विल एटकिंस पुरुषों में धर्म का प्रचार करने लगा। अहा! ईश्वर की बड़ी विचित्र महिमा है! जो व्यक्ति दो दिन पहले उनका नाम न लेता था वही आज उनकी महिमा का सर्वश्रेष्ठ प्रचारक बन बैठा। मैंने इन लोगो को अपनी बाइबिल दी। एटकिंस ने उस ग्रन्थ को देख कर बड़े आग्रह से दोनों हाथों से उठा लिया और मारे खुशी के उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसने अपनी स्त्री को पुकार कर कहा-देखो, देखो, जिस ग्रन्थ के लिए मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था वह ग्रन्थ आज अनायास मुझे मिल गया। यह ग्रन्थ हम लोगों की अज्ञता का निवारक, धर्म-पथ का शिक्षक, विपद में सहायक और शोक के समय धैर्यदायक होगा।

एटकिंस की स्त्री ने समझा कि स्वयं ईश्वर ने हम लोगों के उपकारार्थ यह ग्रन्थ भेज दिया है। मैंने उन लोगों को समझा दिया कि ईश्वर अप्रत्यक्ष-कारण होने पर भी वे मनवाणी के अगोचर है। वे जो कुछ करते है अप्रकट रूप से ही करते हैं। उनका अलौकिक कार्य ही उनके कारण होने का पूरा प्रमाण है। धूर्त पुरोहितगण इसी विषय को लेकर अनेक सम्प्रदाय कल्पित करके उन्हें विविध-भ्रान्त-धारणाओं में उलझा रखते हैं। किन्तु मेरी इच्छा थी कि मेरे टापू में बुद्धिविचार से ही धर्म की प्रतिष्ठा हो।

मैं इन लोगों के लिए जलक्रीड़ा करने के उपयुक्त नाव और तोप लाया था। वे दोनों चीज़ मैंने इन लोगों को न दीं। कारण यह कि ये लोग जो इतने दिनों से आपस में लड़ते झगड़ते आये हैं, सो कौन जाने मेरे परोक्ष में ये लोग फिर वैसे ही झगड़ने लग जायँ तब तो सर्वनाश ही होगा।