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उपनिवेश में समाज और धर्म-संस्थापन।


ठीक नहीं। तुम अच्छे घराने के मालूम होते हो। तुम्हारा शीलस्वभाव भी अच्छा है। देश में तुम्हारे स्वजनवर्ग भी हैं। ऐसी अवस्था में एक दासी के साथ ब्याह करना क्या तुम्हें अच्छा जान पड़ता है? फिर वह दासी भी तो तुम्हारे योग्य पात्री नहीं है। एक तो वह तुम्हारी टहलनी है, दूसरे तुमसे वह नौ दस वर्ष उम्र में बड़ी है। तुम अधिक से अधिक सत्रह-अठारह वर्ष के होगे और दासी की उम्र २६-२७ साल से कम न होगी। मैं तुमको इस द्वीप से तुम्हारे देश पहुँचा दूँगा। तब तुम ज़रूर इस हठकारिता के लिए अनुतप्त होगे और तुम दोनो का जीवन शोचनीय हो उठेगा।" मैं असम ब्याह के अनेक दोषों के सम्बन्ध में एक लम्बी वक्तृता देने चला था, किन्तु उसने मुसकुरा कर बड़ी नम्रता से मेरे व्याख्यान में बाधा डाल कर कहा-महाशय, आपने मेरी बात समझी नहीं। मेरा वह मतलब नहीं जो आपने समझा है। मैं दासी के साथ ब्याह करना नहीं चाहता। आपके लाये हुए मिस्त्री के साथ वह ब्याह करना चाहती है।

यह सुन कर मैं प्रसन्न हुआ। वह दासी जैसी शान्त-स्वभावा, शिष्ट और सुशीला थी वैसा ही उसने अपने लिए वर भी चुना था। मैने उसी दिन उस दासी का ब्याह कर दिया। उन वधू-वरों को मैंने यौतुक-स्वरूप कुछ ज़मीन दी और उस नव-युवक को भी थोड़ी सी ज़मीन दी। पीछे ये लोग आपस में जगह-ज़मीन के लिए लड़ाई-झगड़ा न करें, इसलिए सबके रहन-सहन, खेत-खलिहान आदि के योग्य ज़मीन के चारों ओर की सीमा निर्दिष्ट कर के पट्टा लिख दिया और उन लोगों से क़बूलियत लिखा ली। पट्टे पर मैंने अपनी मुहर कर दी और क़बूलियत पर उन लोगों का हस्ताक्षर करा कर गवाहों से भी