पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/३३६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१३
उपनिवेश में समाज और धर्म-संस्थापन।

मैं-अच्छा एटकिंस, यह तो कहो कि तुमने स्त्री को क्या समझाया?

एटकिंस अपने और अपनी स्त्री के कथोपकथन का वर्णन करने लगा।

एटकिंस ने पहले स्त्री को यह समझा दिया कि ब्याह क्या है। इसके बाद उसने क्रम क्रम से ईश्वर का महत्व और उनकी अतुल दया की बात समझाई वह इतना बड़ा पापिष्ठ था तब भी भगवान् ने उसके अनेकानेक अपराधों को भुला कर उसे स्वास्थ्य, आनन्द, भोजन, पान और प्रणय का सुख प्रदान कर उसे सुरक्षित कर रक्खा है। इसके लिए उन्हें एक बार भी अब तक इस मुँह से धन्यवाद तक नहीं मिला। वे अपनी मूर्ख सन्तान को सत्यधर्म के पथ पर लाने की चेष्टा करते हैं। जो उस पथ पर आता है उसे वे असीम आनन्द देते हैं और उनकी कृपा से वह कृतकृत्य होता है। यह सुन कर उसकी स्त्री ने कहा-यदि ईश्वर सत्य और न्याय-परायण है, यदि वे सर्वशक्तिमान् और सृष्टि के विधायक हैं, यदि वे धर्म के बन्धु और पाप के शत्रु हैं तो मैं कभी उनकी आज्ञा के प्रतिकूल काम न करूँगी और न तुम्हींको बुरा काम करने दूँगी। वे दिन दिन हम लोगों के भले की कामना करते हैं। हम लोग अपनी चित्तवृत्ति के वशीभूत हो कर अपने आप अशुभ मार्ग पर जाकर धर्मभ्रष्ट होती हैं। हम अब बुरे मार्ग से बच कर चलेंगी। वही दीनबन्धु परमेश्वर हम लोगों को अशुभ प्रवृत्ति के साथ युद्ध करने का सामर्थ्य देंगे और उन्हीं की कृपा से हम लोग उस पर विजय प्राप्त कर के सुखी होंगे। मैं तुम्हारे साथ नित्य शाम-सबेरे उनका गुण