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राबिन्सन क्रूसो।

मैं-उन्होंने तुमको क्या शिक्षा दी थी?

एटकिंस-उन्होंने मुझको शिक्षा देने में कोई त्रुटि नहीं की किन्तु मैंने उनका एक भी उपदेश ग्रहण नहीं किया। मैं बड़ा पापिष्ठ था। मैंही अपने पिता की मृत्यु का कारण हुआ।

मैं-तो क्या तुमने अपने बाप को मार डाला?

एटकिंस-मैंने अपने हाथ से उनका गला नहीं काटा, किन्तु अपने विरुद्धाचरण से उनके हृदय को सन्तप्त कर के मैं ही उनकी असमय-मृत्यु का कारण हुआ था।

मैं-अच्छा एटकिंस, इन बातों को जाने दो। बीती हुई बातों की आलोचना से क्या फल? इस बात की चर्चा से तुम्हें कष्ट तो नहीं हो रहा है?

एटकिंस-क्या कष्ट कुछ ऐसा वैसा है? वह मैं आपसे क्या कहूँ!

मैं-कुछ कहने की ज़रूरत नहीं। तुम्हारे कष्ट का अनुभव स्वयं मेरे मन में हो रहा है। इस टापू के प्रत्येक वृक्ष, लता, गुफा और पहाड़ मेरी अकृतज्ञता के साक्षी हैं। मैं भी अपने बुरे आचरण के द्वारा अपने पिता की मृत्यु का कारण हुआ था। तुममें और मुझमें भेद इतना ही है कि तुम मेरी अपेक्षा अधिक अनुतप्त हुए हो। पर यह तो बतलाओ कि ऐसा भाव तुम्हारे मन में क्योंकर उत्पन्न हुआ?

एटकिंस-मैं अभी पहले पहल अपनी स्त्री को ईश्वर विषयक ज्ञान सिखलाने की चेष्टा कर रहा था। पर मैं उसे क्या सिखलाऊँगा; मैं ही उसके पास से धर्मतत्त्व की शिक्षा प्राप्त कर आया हूँ।