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उपनिवेश में समाज और धर्म-संस्थापन।


उपयुक्त समझ बैठे थे। परन्तु वास्तव में ईश्वर किसे कहते है यह समझ उन लोगों को न थी। ईश्वर की अलौकिक शक्ति और विचित्र लीला की ओर उन का ध्यान कभी नहीं जाता था। तब हमने उन लोगों से कहा,-"तुम लोग पहले ईश्वर की महिमा भली भाँति जान लो फिर स्त्रियों को ईश्वर पर विश्वास उत्पन्न करा कर उन्हें दीक्षित करो।" एटकिंस ने लम्बी साँस लेकर कहा-"हा भगवन्! मैं तो अत्यन्त दुराचारी और पापिष्ठ हूँ। मैं ईश्वर की महिमा के प्रचार करने का उपयुक्त पात्र नहीं।" मैने कहा-"सबकी अपेक्षा तुम्हीं विशेष उपयुक्त हो। दुष्कर्मी और पापियों को ईश्वर अनुताप के द्वारा पवित्र कर के उनपर अपनी दया और महत्व का प्रकाश करते हैं।" एटकिन्स ने गम्भीरतापूर्वक मेरी बात सुनी और वहाँ से उठ कर वह धीरे धीरे स्त्री के पास गया।

हम लोगों ने बड़ी देर तक उसके लौट आने की प्रतीक्षा को। इसके बाद उसे पुकारने जाकर देखा कि वे स्त्री-पुरुष एकत्र हो ईश्वर की उपासना कर रहे हैं। यह देख कर हम लोगों का हृदय हर्ष से उच्छ्वसित हो उठा। पुरोहित तो यह दृश्य देख कर अपनी आँखों के आनन्दाश्रु को न रोक सके। वे रोने लगे। उपासकों को उसी अवस्था में छोड़ कर हम चले आये। हमने जो उनको उपासना करते देखा था वह बात गुप्त ही रही। किसीसे हम लोगों ने कही नहीं।

कुछ देर बाद एटकिंस के लौट आने पर मैंने उससे बात ही बात में पूछा-एटकिंस, तुमने कहाँ तक लिखना-पढ़ना सीखा था? तुम्हारे पिता कौन थे?

एटकिंस-मेरे पिता पादरी थे।