पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/३२६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०३
द्वीप में असभ्यों का दुबारा उपद्रव


नष्ट कर डाला। यह देखकर वे विकट चीत्कार करते हुए पागल की भाँति जङ्गल में इधर उधर दौड़ने लगे। वे लोग खेतों को रौंदने लगे; अधपके अंगूरों को तोड़ तोड़ कर कुछ खाने और कुछ फेंकने लगे। ऐसे ही और भी अनेक उत्पात करने लगे। किन्तु भाग्यवशात् उन लोगो ने हमारे किले का और गुफा के भीतर वाले पालतू बकरों का कुछ पता न पाया था, इसी से कितनी ही वस्तुएँ बच गई थीं। तब भी वे गिनती में इतने अधिक और दौड़ने में ऐसे तेज थे कि निरस्त होने पर भी उन पर एकाएक आक्रमण करने का साहस कोई नहीं करता था। क्रमशः उन लोगों की दशा शोचनीय हो उठी और साथ साथ हमारे पक्ष की भी। हम लोगों की दुरवस्था का कारण खाद्य-सामग्रियों का अभाव न था; कारण था दुर्दम्य हिंस्र मनुष्यों का उत्पात। असभ्य लोग भूख से व्याकुल होकर चारों ओर विभीषिका फैलाते फिरते थे। द्वीप-निवासियों को उनका उपद्रव असह्य हो उठा। आख़िर उन लोगों ने अपने बचाव के लिए असभ्यों का शिकार करना निश्चय किया। यदि उनमें कोई अधीनता स्वीकार कर आज्ञानुसार काम करने को राजी होगा तो वे और असभ्य नौकरों की भाँति किसी काम में लगा लिये जायँगे। अब हम लोगों की तरफ़ के आदमी उन असभ्यों को देखते ही बाघ-भालू की तरह मारने लगे। आख़िर वे लोग ऐसे सीधे हो गये कि उनकी और बन्दूक़ उठाते ही वे जमीन पर गिर पड़ते थे। प्राणों के भय से सभी घने जङ्गल के भीतर छिप कर रहने लगे और भूखों मरने लगे।

यह देख़ कर सभी का चित्त दया से द्रवित हो उठा, विशेष कर सर्दार का। उन्होंने सबसे कहा कि एक जीवित