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द्वीप में असभ्यों का दुबारा उपद्रव।


थे और बराबर आगे बढ़े ही आते थे। उन्होंने इतने बाण चलाये कि बाणों से आकाश-मण्डल भर गया। उन असभ्यों में जो व्यक्ति घायल हुए थे, पर पूरे तौर से ज़ख़्मी नहीं हुए थे, उन लोगों के सिर पर खून सवार हो गया था। इसीसे वे लोग पागल की भाँति युद्ध करते थे।

असभ्य लोग अँगरेज़ और स्पेनियर्ड की लाश को देख उस पर हथियार चलाने लगे, मरे को मारने लगे। उन मुर्दों के हाथ-पैर, और गला काट कर मृत-शरीर को खण्ड खण्ड कर के उन्होंने अपनी नीचता का परिचय दिया। हम लोगों को भागते देख कर उन लोगों ने दूर तक पीछा न किया। सभी ने मण्डलाकार खड़े होकर दो बार उच्चस्वर से जयध्वनि की। किन्तु उनके घायल आदमी अधिक लहू बहने के कारण मुर्च्छित तथा प्राण-हीन हो होकर गिरने लगे। यह देख कर वे लोग फिर दुःखी हुए।

एटकिंस की इच्छा थी कि फिर दल-बल के साथ उन पर आक्रमण किया जाय किन्तु सर्दार ने कहा-"नहीं, इसकी अब ज़रूरत नहीं। कल सबेरे फिर देखा जायगा। आज अब शान्त होकर रहना ही ठीक है। असभ्यों के घायलों की भली भाँति सेवा-शुश्रूषा न होने से उनकी हालत बुरी हो जायगी। अधिक रक्त-क्षय होने से वे दुर्बल हो जायँगे और घाव की पीड़ा से चल-फिर न सकेंगे तब हम लोगों के शत्रुओं की संख्या और भी कम होगी।" एटकिंस ने जरा हँस कर और ज़ोर देकर कहा-हाँ हाँ, कल मेरी भी तो वैसी ही दशा होगी। इसी कारण तो चटपट आज ही काम चुका लेना चाहता हूँ।