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क्रूसो के अनुपस्थित-समय का इतिहास।


घर जाकर देखा कि सभी के हाथ बँधे हैं। स्त्री-पुरुष दोनों बिलकुल नङ्ग धड़ङ्ग हैं और सब एक ही साथ बैठे हैं। यह दृश्य स्पेनियर्डों की आँखों में बेतरह बुरा मालूम हुआ।

पुरुष अच्छे हट्टे-कट्टे और बलिष्ठ थे। क़द लम्बा सा, शरीर सुगठित, चेहरा देखने में बुरा न था। उम्र तीस से पैंतीस के भीतर थी। स्त्रियाँ भी बदसूरत न थीं। शरीर लावण्य-युक्त था। केवल रङ्ग साँवला था। यदि बदन का रंग गोरा होता तब तो वे ख़ास लन्दन की सुन्दरियों में परिगणित होतीं और आदर पातीं। उनमें दो स्त्रियाँ तीस-चालीस वर्ष की थीं। दो स्त्रियों की उम्र चौबीस-पच्चीस वर्ष की थी। एक नव-यौवना थी। उसकी उम्र सोलह सत्रह वर्ष से अधिक न थी। सब की अपेक्षा यही विशेष रूपवती थी।

फ़्राइडे के पिता ने दुभाषिया बन कर उन असभ्यों को समझा दिया कि 'तुम लोगों को प्राणों का भय न होगा। सभ्यजाति के लोग मनुष्य का मांस नहीं खाते।' यह आश्वासन-वाक्य सुन कर उन लोगों के हर्ष का वारापार न रहा। वे अपने हृदय का उल्लास इस प्रकार प्रकट करने लगे, जिसका वर्णन करना कठिन है।

इसके बाद उन लोगों से यह बात पूछी गई कि तुम हमारे समाज की अधीनता स्वीकार कर काम करने को राजी हो या नहीं। यह प्रश्न सुनते ही वे लोग मारे खुशी के नाचने लगे। इसका आशय यही कि हम लोग हृदय से काम करना पसन्द करते हैं।

किन्तु स्पेनियर्डों के सर्दार स्त्रियों के आने से डर गये। अँगरेज़ लोग यों ही आपस में लड़ते-झगड़ते थे। अब इन स्त्रियों के कारण, मालूम होता है भारी फ़साद उठ खड़ा होगा।'