पूर्वक दूर दूर से अपने सिर पर आवश्यक वस्तुएँ ढो ढो कर लाने लगे। हम लोग यहाँ चार दिन रहे और इशारे से
उनसे आसपास के द्वीप-निवासियों के शील-स्वभाव का हाल पूछने लगे। असभ्यों ने संकेत द्वारा कहा-'सभी टापुओं के मनुष्य नर-मांस खाते हैं, केवल हम लोग ऐसे हैं जो सब मनुष्यों का मांस नहीं खाते। किन्तु हम लोग भी युद्ध में गिरफ़्तार हुए नर-नारियों को मार कर विजय के उपलक्ष में भोज ज़रूर करते हैं। अभी हाल ही में हम लोगों ने ऐसा
ही नर-मेध किया है। हम लोगों के महाराज ने दो सौ दुश्मनों को बन्द कर रक्खा है। अभी वे खूब खिला-पिला
कर पुष्ट किये जा रहे हैं। इसके बाद एक दिन बहुत बड़ा भोज होगा।' उन सब बन्दियों को देखने के लिए हम लोग अधिक उत्कण्ठित हुए। उन बन्दियों के देखने का बड़ा कुतूहल हुआ। किन्तु उन असभ्यों ने इस कुतूहल को नर-मांस-लोलुपता समझ कर इशारे से कहा-'इसके लिए इतनी आतुरता क्या? कल तुम लोगों को भी कुछ मनुष्य ला देंगे, उन्हें खा लेना।' दूसरे दिन सबेरे ग्यारह पुरुष और पाँच स्त्रियाँ लाकर हम लोगों को उपहार में दीं। मानो इन मनुष्य का मूल्य भेड़-बकरों से अधिक नहीं है। हम लोग निर्दय और घातक होने पर भी नर-मांस खाने का नाम सुन कर सहम उठे। हम लोगों को उबकाई आने लगी और असभ्यों की इस राक्षसी प्रकृति पर हमें बड़ी घृणा हुई, किन्तु नरबलि का उपहार लौटाना असभ्यों के आतिथ्य का विषम अपमान है। इसलिए हम लोग बड़े संकट में पड़े। इतने लोगों को लेकर हम क्या करेंगे? तथापि हमें यह उपहार स्वीकार करना ही पड़ा और उपहार के बदले हमने
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क्रूसो के अनुपस्थित-समय का इतिहास।