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दूसरी बार की विदेश-यात्रा।

इसके बाद वह भद्र-पुरुष अपने साथियों को सान्त्वना देकर उनकी सेवा में नियुक्त हुए। क्रम क्रम से उन्होंने सब को शान्त और प्रकृतिस्थ किया।

इन लोगों के अभद्र भावों का प्रातिशय्य देख कर मैंने समझा कि जीवन के लिए संयम क्या वस्तु है। असंयत आनन्द लोगों को ऐसा अधीर और उन्मत्त बना डालता है तो काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि शत्रु-असंयत होने पर लोगों से कौन सा अनर्थ नहीं करा सकते। मनुष्य-जीवन में संयम (आत्म-निग्रह) ही अमृत है, अमूल्य धन है और वही महत्त्व का परिचायक है।

पहले दिन हम लोग इन अतिथियों को लेकर बड़े ही गोलमाल में पड़े। दूसरे दिन जब वे लोग गाढ़ी नींद के आने के बाद उठे तब मालूम हुआ जैसे ये लोग वे नहीं हैं जो कल थे। सभी हम लोगों से सेवा और साहाय्य पाकर विनयपूर्वक सकृतज्ञ भाव से शिष्टता का परिचय देने लगे। उन के जहाज़ के कप्तान और पुरोहित दूसरे दिन मुझसे और मेरे भतीजे से भेंट करके कहने लगे-आपने हम लोगों के प्राण बचाये हैं, हम लोगों के पास इतनी जमा-जथा नहीं जो आपकी इस दया के बदले देकर कृतज्ञता प्रकट कर सके। हम लोग जल्दी में, जहाँ तक हो सका, कुछ रुपया और थोड़ा बहुत माल-असबाब आग के मुँह से बचाकर साथ लाये हैं। यदि आप आज्ञा दें तो हम लोग वे सब रुपये आपकी सेवा में समर्पण करें। हम लोगों की केवल यही प्रार्थना है कि आप कृपा कर के हम लोगों को ऐसी जगह उतार दें जहाँ से हम लोग देश लौट जाने का प्रबन्ध कर सकें।