लोग अग्नि-प्रकाश के अतिरिक्त और कुछ नहीं देख सकते थे। आध घंटे के बाद हम लोगों ने स्पष्ट देखा कि समुद्र में एक बड़ा सा जहाज़ जल रहा है।
यह देख कर हम लोगों के हृदय में दया उमड़ आई। यद्यपि हम लोग न जानते थे कि यह कहाँ का जहाज़ है और वे लोग किस देश के यात्री हैं, तथापि उन लोगों की वेदना से हम लोग व्याकुल हो उठे। तब मुझे अपनी विपत्तियों से उद्धार पाने की बात स्मरण होने लगी। यदि उन विपद्ग्रस्त बेचारों के पास और कोई नाव न हो तब उनकी न मालूम क्या दुर्दशा होगी, यह विचार कर मैंने आज्ञा दी कि हमारे जहाज़ से पाँच बार तोप की आवाज़ की जाय। इससे वे लोग समझेगे कि उनके सहायक निकटवर्ती हैं और वे नाव पर आरूढ़ हो कर अपनी प्राणरक्षा कर सकेंगे। आग के कारण हम लोग उनके जहाज़ को देख सकते थे, पर वे लोग हमारे जहाज़ को नहीं देख सकते थे। हम लोग प्रातःकाल की प्रतीक्षा करने लगे। इतने में एकाएक वह जलता हुआ जहाज़ आकाश की ओर उड़ गया और देखते ही देखते आग एक दम बुझ गई। समुद्र गाढ़ अन्धकार में डूब गया। ऐसा मालूम हुआ जैसे वह जहाज़ सर्वदा के लिए समुद्र के गर्भ में विलीन हो गया। हम लोग यद्यपि ऐसी ही किसी दुर्घटना की आशङ्का कर रहे थे तथापि उसे आँखों के सामने होते देख हम लोगों के मन में बड़ा ही भय हुआ। उस जहाज़ के यात्रियों की दुर्दशा की बात सोच कर जी व्याकुल होगे लगा। वे लोग या तो जहाज़ के साथ जल गये होंगे या समुद्र में डूब कर मर गये होंगे अथवा इस अपार महासागर में नाव के ऊपर डूबने ही पर होंगे! वे सब के सब