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दूसरी बार की विदेश-यात्रा।

मेरा नसीब जैसा ख़राब था वैसा कोई विशेष संकट इस दफ़े संघटित न हुआ। पर यह बात नहीं कि सङ्कटों ने मेरा पीछा कतई छोड़ दिया। रवाना होने के साथ ही प्रतिकूल वायु बहना और पानी बरसना शुरू हुआ। मैंने समझा कि मुझको विपत्ति में डालने ही के लिए इस प्रकार प्रकृतिविपर्यय हो रहा है। प्रतिकूल वायु हम लोगों के जहाज़ को उत्तर ओर ठेल कर ले गया। हम लोग आयरलेन्ड के गालवे बन्दर में बाईस दिन तक टिके रहे। यहाँ खाद्य-सामग्री खूब सस्ते दाम पर बिकती थी। हम लोगों ने साथ की रसद ख़र्च न कर के ख़रीद कर खाया और कुछ जहाज़ में रख भी लिया। यहाँ मैंने बहुत से सूअर, गाय, और बछड़े मोल लिये। मैंने उन्हें अपने टापू में ले जाना चाहा था, पर वहाँ तक वे न पहुँच सके।

हम लोग ५वीं फ़रवरी को अनुकूल वायु पा कर आयरलेन्ड से रवाना हुए। २8 वीं फरवरी को जहाज़ के मेट ने आ कर कहा-"हमने तोप छुटने की आवाज़ सुनी है और आग की झलक देखी है!" हम लोग दौड़ कर डेक के ऊपर गये। कुछ देर तक तो कुछ सुनाई न दिया पर कुछ ही देर के बाद आग की ज्वाला देखने में आई। कहीं दूर ख़ूब ज़ोर की आग लगी है। उस महासमुद्र में पाँच सौ मील के भीतर कहीं स्थल का नाम-निशान न था, इसलिए सोचा कि ज़रूर किसी जहाज़ में आग लगी है। इसके पहले जो तोप की आवाज़ सुनी गई थी वह इसी विपत्ति की सूचना थी। जब तोप की आवाज़ हुई थी तब वह जहाज़ हमारे जहाज़ से बहुत दूर न था। हम लोग उस प्रकाश की ओर जहाज़ को ले चले। जितना ही आगे जहाज़ जाने लगा उतना ही प्रकाश का आधिक्य दिखाई देने लगा। कुहरा फैला रहने के कारण हम