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जीवन-वृत्तान्त के प्रथम अध्याय का उपसंहार।


भेड़िये उन्हें फाड़ फाड़ कर खा रहे हैं। एक मनुष्य को सिर से आधे धड़ तक खा चुके हैं! उसके पास एक बन्दूक पड़ी है। कुछ देर पहले शायद इसी शख्स के बन्दूक चलाने की आवाज़ सुन पड़ी थी। यह देख कर भय से हम लोगों के प्राण सूख गये। क्या करना चाहिए, कुछ समझ में न आता था। किन्तु उन हिंस्र-पशुओं ने हम लोगों के कर्तव्य को शीघ्र ही स्थिर कर दिया। उन्होंने शिकार के लोभ से हम लोगों को घेर लिया। उनकी संख्या तीन सौ से कम न होगी। हम लोगों के भाग्य से प्रवेश-मार्ग के पास ही, जंगल के भीतर, एक पेड़ का तना कटा पड़ा था। में अपने छोटे से दल को शीघ्र ही उस विशाल पेड़ की आड़ में ले गया। हम लोगों ने घोड़े से उतर कर एक त्रिभुजाकार व्यूह की रचना की और उसके बीच में घोड़ों को कर लिया। भेड़िये गर्रा गुर्रा कर हम लोगों की ओर दौड़े और जिस पेड़ की आड़ में हम लोग छिपे थे उस पर कूद कूद कर चढ़ने लगे। मैंने अपने साथियों से कह दिया की पूर्ववत् एक के बाद एक बन्दूक़ छोड़ी जाय। पहली ही बेर हम लोगों ने बहुत भेड़िये मार डाले। किन्तु इतने पर भी वे हम लोगों पर भयङ्कर भाव से आक्रमण कर रहे थे। सामने के झुण्ड को जब तक हम मार भगाते थे तब तक पीछे वाला झुण्ड हम लोगों पर हमला करता था। इसलिए हम को आगे-पीछे दोनों ओर लगातार बन्दूक़ों की आवाज़ करनी पड़ी। चार-पाँच बेर की आवाज़ में हम लोगों के हाथ से सत्रह अठारह भेड़िये मरे और इससे दुगुने घायल हुए तो भी वे ऐसे निर्भीक थे कि पीछे न हटे। एक एक बार गोली खा कर क्षण भर खड़े रहते और फिर एकाएक आगे आते थे। तब मैंने अपने दूसरे नौकर से कहा, "तुम इस कटे हुए .