हुआ परन्तु मैंने उसे ऐसा करने से रोका। बीच मैदान में
जाते न जाते हम लोगों ने भेड़ियों का गर्जना सुना और कुछ
ही देर बाद देखा कि डेढ़ सौ भेड़िये का झुण्ड हम लोगों की
ओर आ रहा है। हम लोग इसका क्या प्रतीकार करेंगे―यह
सोच कर भी कुछ ठीक न कर सकते थे। आख़िर हम लोग
क़तार बाँध एक दूसरे से सट कर खड़े हो गये। मैंने सबसे
कह दिया कि एक साथ सब बन्दूकें न चला कर एक के बाद
दूसरी बन्दूक़ चलाई जाय। इससे यह फ़ायदा होगा कि जब
तक और लोग गोली चलावेंगे तब तक दूसरों को बन्दूक़
भरने का अवकाश मिलेगा। इससे बन्दूक़ की आवाज़ लगा-
तार जारी रहेगी जिससे संभव है कि भेड़ियों को गतिरुक
जाय। हम लोगों की पहली बार की बन्दूक़ें छूटते ही बन्दूक़ों
का शब्द और आग की झलक देख कर सभी भेड़िये डर कर
खड़े हो रहे। चार मरे और कई एक घायल होकर भागे। मैंने
कभी सुना था कि मनुष्यों की चिल्लाहट सुन कर भेड़िया
डरता है। इसलिए मैंने सभी को एक साथ ख़ूब ज़ोर से
चिल्लाने का परामर्श दिया। यह उपचार एकदम व्यर्थ न
हुआ। हम लोगों के चिल्लाते ही भेड़िये मुँँह फेर कर भागने
को उद्यत हुए। तब मैंने अपने साथियों के उन पर पीछे से
गोली चलाने की आज्ञा दी। पीछे से गोली की चोट खाकर
मरते गिरते लड़खड़ाते हुए वे सब जंगल के भीतर जा घुसे।
यह अवसर पाकर हम लोग बन्दूक़ें भर कर बड़ी शीघ्र गति
से जाने लगे। किन्तु दो चार डग आगे जाते न जाते हम
लोगों ने अपनी बाईं ओर के जंगल में वन्य जन्तुओं का भय-
ङ्गर चीत्कार सुना। किन्तु वह शब्द हम लोगों के सामने की ओ
ओर होता था। हमें लोगों को उधर ही ले जाता था।
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जीवनवृत्तान्त के प्रथम अध्याय का उपसंहार।