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क्रूसो का स्वदेश-प्रत्यागमन और धनलाभ।


पहुँचा। मेरा परम भक्त फ़्राइडे बराबर मेरे साथ रहा। लिसबन पहुँच कर मैंने, बहुत ढूँढ़ने पर, अपने कप्तान का पता पाया। इन्हींने मुझको आफ़्रिका के उपकूल में जहाज़ पर चढ़ाकर ब्रेज़िल पहुँचा दिया था। वे अब बूढ़े हो गये थे। उनका सयाना बेटा ब्रेज़िल जाने-आने वाले जहाज़ का कप्तान था। वृद्ध मुझको पहचान न सके। मैं भी पहले उनका परिचय न मिलने से उन्हें पहचान न सका। मैंने अपना परिचय देकर उन्हें मुद्दत की बात का स्मरण करा दिया।

प्रथम मिलन के प्रणय-सूचक कुशल-प्रश्न होने के बाद मैंने उनसे अपनी खेती-बारी का हाल पूछा। उन्होंने कहा-"नौ वर्ष से हम ब्रेज़िल नहीं गये। जब गये थे तब तुम्हारे कारपरदाज़ को जीवित देख आये थे। किन्तु जिन दो व्यक्तियों को तुम अपनी सम्पत्ति सौंप आये थे वे मर गये हैं।" मेरा धन इस समय करीब करीब गवर्नमेन्ट ने अपने हाथ में कर लिया है। मैं या मेरा कोई वारिस यदि उस धन का दावेदार खड़ा न होगा तो कितना ही अंश सरकार ज़ब्त कर लेगी और कुछ धर्मकार्य में खर्च कर देगी। अभी मैं या मेरी ओर से और कोई वहाँ जाय तो मुझे अपनी सारी सम्पत्ति मिल जायगी। इस समय मेरे अंश की सालाना आय तीन-चार हज़ार रुपये हो सकती है। मैंने वसीयतनाम में इन्हीं कप्तान को अपनी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी नियत किया था। किन्तु मेरे मरने की सच्ची खबर न पाने के कारण कप्तान को अब तक मेरी सम्पत्ति नहीं मिली। केवल उन्हें पिछले कई सालों का मुनाफ़ा मिला है। उन्होंने मुझको सब हिसाब दिखला दिया और यह भी कहा कि तुम्हारे रुपयों से हमने जहाज़ का अंश ख़रीद लिया है। इस समय उनकी अवस्था ऐसी न थी कि