स्थान दिखा दिये। जिस तरह मैं रोटी बनाता, और किस-मिस तैयार करता था यह भी सिखा दिया। उन लोगों को मैंने बन्दूक, तलवार, और गोली-बारूद भी दी। मैं बकरों का शिकार कैसे करता था, कैसे उन्हें पकड़ता था, किस तरह बकरी को दुहता था और कैसे दूध से मक्खन निकालता था यह भी सिखा दिया। कप्तान के यहाँ से मँगा कर उन लोगों को और थोड़ी बारूद, तरकारी के बीज तथा स्याही दी। स्याही के बिना मुझे बड़ा कष्ट हुआ था। किन्तु इस समय कप्तान की बात से मुझे पछतावा हुआ कि मैंने अपनी बुद्धि से कितनी ही प्रयोजनीय वस्तुओं का आविष्कार तो कर लिया था किन्तु कोयले से स्याही बनाने की बात मेरे ख़याल में न आई। बड़ी विचित्रता है! उन निर्वासित व्यक्तियों को घर द्वार सौंप कर मैंने कह दिया कि यहाँ सत्रह स्पेनियर्ड व्यक्तियों के आने की संभावना है। तुम लोग उनके साथ बन्धुभाव का व्यवहार करना। इन लोगों से मैंने इस बात की शपथ करा लो। स्पेनियर्ड के नाम से मैं एक चिट्ठी भी लिखकर इन्हें दे गया।
सब प्रबन्ध करके मैं दूसरे दिन जहाज़ पर सवार हुआ। उस रात को यात्रा न हो सकी। दूसरे दिन सबेरे उन निर्वासित पाँच व्यक्तियों में से दो श्रादमी तैर कर जहाज़ के पास आ गये। वे अपने साथियों के दुःस्वभाव की निन्दा करके घिघिया कर कहने लगे-"दुहाई कप्तान साहब, हमको जहाज़ पर चढ़ा लीजिये फिर चाहे हमें फाँसी दे दीजिएगा, यह भी हमें मंजूर है पर हम इन लोगों के साथ टापू में न रहेंगे। वे हमारा बुरी तरह से खून कर डालेंगे।" उनकी इस प्रार्थना को बारंबार अस्वीकार कर