मण करें इसकी भी अब संभावना न रही। जो लोग किनारे उतरे थे वे एक साथ आगे-पीछे होकर आने लगे। क्रमशः वे लोग उसी पहाड़ पर चढ़ने लगे जिसके नीचे मेरा घर था। के हम लोगों को नहीं देखते थे किन्तु हम लोग उन्हें अच्छी तरह देख रहे थे। वे लोग ज़रा और हमारे नज़दीक आ जाते तो बड़ा अच्छा होता। हम लोग उन पर गोली
चला सकते या दूर जाते तो भी अच्छा होता। हम लोग वहाँ से बाहर निकल जाते।
धीरे धीरे वे लोग पर्वत की चोटी पर चढ़ गये। वहाँ से वन और उपत्यका बहुत दूर तक देख पड़ती थी। वे लोग उच्चस्वर से पुकारते पुकारते थक कर चुप हो रहे, पर किसी तरफ़ से कुछ उत्तर न आया। वे लोग और ऊपर जाने का साहस न करके एक दरख्त के नीचे बैठ कर आपस में सलाह करने लगे। वे लोग यदि से रहते तो हम, उनके संगियों की भाँति, उन्हें भी सहज ही में वश में कर लेते किन्तु वे लोग विपत्ति के भय से जागते ही रहे। क्या करना चाहिए? कुछ स्थिर न करके हम लोग चुपचाप देखने लगे।
आख़िर वे लोग एकाएक उठ खड़े हुए और नाव की ओर चले। उन लोगों ने साथियेां का अन्वेषण छोड़कर अब जहाज़ पर जाना ही स्थिर किया। यह देखकर मेरा जो सूख गया। हठात् उन लोगों को लौटाने का एक उपाय सूझा। खाड़ी के पास जाकर खूब जोर से चिल्लाने के लिए मैंने फ़्राइडे और मेट को कहा। इसके बाद नाविकगण यदि उस शब्द की टोह में इस तरफ़ आवें तो उसी तरह चिल्लाते हुए दूर निकल जायँगे और उन लोगों के चक्कर में डालकर फिर मेरे पास लौट आगे