हम लोग जब सारी बातें सोच रहे थे तब जहाज़ के लोग बन्दूक की आवाज़ करके और पताका हिला कर नाव को बुलाने लगे। बार बार बन्दूक की आवाज़ करने पर भी जब उन्होंने देखा कि नाव नहीं हिली तब जहाज़ से एक और डोंगी उतार कर उस पर कई एक नाविक सवार हो किनारे की ओर आने लगे। मैंने दूरबीन लगा कर देखा, दस ग्यारह आदमी बन्दूक़ें लिये चले आ रहे हैं।
कप्तान कहने लगा कि इतने आदमियों के साथ हम लोग कैसे भिड़ सकेंगे। मैंने हँस कर कहा-"हम लोगों के सदृश अवस्थापन्न लोगों को फिर भय क्या? जीना-मरना दोनों बराबर। युद्ध का भार मुझे सौंप कर तुम निश्चिन्त रहो, वे लोग अभी तो मेरे बन्दी हुए ही जा रहे हैं। मेरे इस उत्साह-वाक्य से कप्तान प्रसन्न और साहसी हो उठा।
नाव को समुद्र-तट के समीप आते देख मैंने बन्दियों को अपनी गुफा में भेज दिया। फ़्राइडे ने उन लोगों को खाद्य और रोशनी देकर समझा दिया कि यदि तुम लोग भागने की चेष्टा न करके चुपचाप रहोगे तो दो-तीन दिन के बाद छोड़ दिये जाओगे; नहीं तो प्राणदण्ड होगा। इस आशातीत सदय व्यवहार से वे लोग सन्तुष्ट होगये। किन्तु उन लोगों ने यह न जाना कि गुफा के द्वार पर फ़्राइडे निगरानी के लिए नहीं रहा।
कप्तान की सिफ़ारिश और उनकी प्रतिज्ञा पर विश्वास करके देश बन्दियों को स्वाधीनता देकर हम लोगों ने अपने दल में ले लिया। अब हम सात आदमी हथियारबन्द हुए (मैं, फ़्राइडे, तीन आदमियों सहित कप्तान, और दो बन्धन-मुक्त बन्दी)। इससे पूरा भरोसा हुआ कि हम लोग अब दस आदमियों का सामना कर सकते हैं। यदि कप्तान का यह कहना ठीक हुआ