स्पेनियर्ड की बात सुन कर मैं उन लोगों की सहायता करने के राज़ी हुआ और उसे वहाँ भेजने का प्रबन्ध भी करने लगा। किन्तु उसने एक आपत्ति की। उस आपत्ति में दीर्घदर्शिता और सत्यता दोनों का परिचय मिला। स्पेनियर्ड मेरे पास एक महीने से है। मेरा जीवन-निर्वाह किस तरह होता है, इसे वह अच्छी तरह समझ गया है। सब अपनी आँखों देख चुका है। मेरे पास जो संचित अनाज था वह एक आदमी के लिए यथेष्ट था किन्तु अभी तो वह चार मुँह में जाता है। उस पर यदि और यूरोपियन आई आ जायँ तो उतने अनाज से कै दिन गुज़र होगी। इसलिए एक फ़सल अन्न खूब अधिकता से उपजा कर तब उन लोगों को बुलाना ठीक होगा। नहीं तो वे लोग एक विपत्ति से निकल दूसरी विपत्ति में आकर अप्रसन्न हो सकते हैं।
उसकी इस सलाह से प्रसन्न हो कर हम चारों आदमी खेती के काम में प्रवृत्त हुए। एक महीने बाद ज़मीन के अच्छी। तरह जोत गोड़ कर बीज बो दिया।
साथी मिल जाने से मैं अब निर्भय होकर टापू में जहाँ जी चाहता, जाता था। मैं चुन चुन कर पेड़ दिखलाने लगा और फ़्राइडे तथा उसका बाप देने उन्हें काटने लगे। स्पेनियर्ड को मैंने उनकी देखभाल पर नियुक्त किया। मैंने जिस तरह एक एक पेड़ से एक एक तख्ता निकाला था उसी तरह निकालना उन्हें भी बता दिया। क्रमशः उन्होंने एक दर्जन बड़े बड़े तख्ते तैयार किये। भावुक व्यक्ति सोच कर स्वयं समझ सकते हैं कि उस तरह तख़्ता निकालना कैसे कठिन परिश्रम का फल है।