था। मैंने तुरन्त उसका बन्धन काट दिया। फिर उसको उठाने की चेष्टा की। किन्तु वह उठे बिना ही गोंगाँ करने लगा। शायद उसने यह समझा हो कि मैं उसको मारने के लिए उठा रहा हूँ। तब मैंने फ़्राइडे से कहा कि इसको समझा दो कि यह डरे नहीं, और इसे कुछ खाने को भी दो। फ़्राइडे के समझाने पर वह उठ बैठा। फ़्राइडे ने जैसे ही उस व्यक्ति का मुँह देखा वैसे ही उसको अपने गले से लगा कर बड़ा ही स्नेह जनाया। वह हँसकर, रोकर और नाच-गाकर खुशी से पागल हो उठा। बड़ी कठिनाई से मैंने समझा कि वह फ़्राइडे का बाप था। उसका पितृस्नेह देख कर मेरी आँखों में आनन्दाश्रु उमड़ आये।
फ़्राइडे कभी बाप का मस्तक अपनी छाती में लगाता, कभी अपना मस्तक उसकी छाती में छिपाता था; कभी नाचता, कभी हर्ष से चीत्कार कर के नाव से नीचे उछल पड़ता था। उस बूढ़े के हाथ-पैर बन्धन से जकड़ गये थे। फ्राइडे ने बैठ कर धीरे धीरे उसके हाथ-पैर दबा दिये। उसने बाप को पा कर जितना आह्लाद प्रकट किया, वह समझाने में मैं सर्वथा असमर्थ हूँ।
इस अघटित घटना से हम उन असभ्य भगोड़ों का पीछा न कर सके। कुछ देर के बाद जब मैंने समझा कि अब फ़्राइडे का आनन्दोच्छवास कुछ कम हो चला है तब मैंने उसको पुकारा। वह छलाँग मार कर हँसी-भरे मुख से मेरे सामने आ गया। मैंने पूछा, क्यों रे! तू ने अपने बूढ़े बाप को कुछ खाने को दिया है या केवल आदर ही कर रहा है? फ़्राइडे ने कहा-"नहीं, खाने को तो कुछ भी नहीं दिया। मेरे पेट में आप ही आग लगी थी। मेरे पास जो कुछ था उसे