समझा जाता है वही उन लोगों के समाज का अगुवा होगा। तब उन लोगों के गुण-दोष का विचारक मैं कौन हूँ? मैंने इन बातों को सोच विचार कर तय किया कि जाऊँगा तो ज़रूर, तब शर्त यह है कि जैसा देखूँगा वैसा करूँगा।
चुपचाप वन के भीतर घुस करके हम दोनों आदमी उन असभ्य लोगों के पीछे एक पेड़ की आड़ में जा पहुँचे। फ़्राइडे ने झाँक कर देखा और मुझसे कहा,-"वे लोग एक बन्दी को मार कर खा रहे हैं। अब फिर दूसरे को मारेंगे। दूसरा व्यक्ति वही जलमग्न सत्रह गौरागों में का एक है।" अपने देशवासी की ऐसी दुर्दशा की बात सुनकर मेरा अन्तःकरण एकदम विद्रोह से भर उठा। मैंने दूरबीन लगाकर देखा। बन्दी की पोशाक आदि से अनुमान किया कि वह यूरोप देशवासी है। एक मज़बूत लता से उसके हाथ-पैर बँधे हैं। वह किनारे पर एक तरफ़ बालू पर पड़ा है। यह देख कर मैं बीस पच्चीस डग और आगे बढ़ एक झुरमुट की ओट में छिप रहा। तब मेरे और उन असभ्यों के बीच करीब अस्सी गज़ का फासला रहा होगा।
मैंने देखा, उन्नीस आदमी एक जगह बैठे हैं और दो आदमी उस यूरोपियन को मारने गये हैं। वे दोनों निहुर कर उसका बन्धन खोल रहे हैं। अब विलम्ब करना ठीक नहीं, यह सोच कर मैंने फ़्राइडे से कहा-"देखो मैं जैसा जैसा करता हूँ तुम भी वैसा ही करो।" यह कह कर मैंने एक बन्दूक़ पास रख ली और दूसरी उठाकर निशाना ठीक किया। फ़्राइडे ने भी वैसा ही किया। मैंने कहा-"फ़ायर!" दोनों बन्दूक़ें एक साथ गरज उठीं।