इसके बाद मैंने उसको रोटी बनाना सिखलाया। थोड़े ही दिनों में वह मेरे ही ऐसा घर के काम-धन्धों में प्रवीण हो गया।
अब मुझे दो व्यक्तियों के आहार की चिन्ता हुई। मैंने खेती का कारबार बढ़ाया। ज़्यादा ज़मीन तैयार की। फ्राइडे बड़ी खुशी के साथ अपने मन से खेती में परिश्रम करने लगा। वह मेरी प्राज्ञा पालने के लिए सदा तत्पर रहता था।
क्रूसो और फ़्राइडे
जितने दिनों से मैं इस द्वीप में हूँ उनमें यही साल मेरे बड़े सुख का था। फ्राइडे अब मेरी सब मोटी मोटी बातें समझ लेता था। अब वह मेरे साथ खूब बात-चीत करता था। इन बातों से भी बढ़ कर फ्राइडे की निश्छल भक्ति और विश्वास ने मुझे मुग्ध कर रक्खा था।
फ़्राइडे मुझको बहुत चाहता है सही, किन्तु मैंने जानना चाहा कि उसे अब अपने देशको लौट जाने की इच्छा है कि नहीं। एक दिन मैंने उससे पूछा-अच्छा फ़्राइडे, बतलायो तो, तुम्हारे दल के लोग भी युद्ध में कभी विजयी हुए हैं?
फ्राइडे-कभी कभी हो जाते हैं!
मैं-युद्ध में विजयी होकर बन्दियों को क्या करते हैं?
फ़्राइडे-करेंगे क्या? उन्हें मार कर खा डालते हैं।
मैं-तुम इसके पहले कभी इस द्वीप में आये थे?
फ़्राइडे-हाँ, कई बार।
मैं-यहाँ से महासमुद्र का उपकूल कितनी दूर होगा? इतनी दूर आने-जाने में डोंगी डूबती नहीं है?