पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/१९६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७५
फ़्राइडे की शिक्षा।


बन्दूक़ भरते नहीं देखा था। उसने अपने मन में समझा कि बन्दूक़ के भीतर मृत्यु विचित्र ढङ्ग से ढेर की ढेर घुसी है। उसका विस्मय और भय दूर होने में बहुत दिन लगे। यदि मैं उसे न रोकता तो वह शायद मेरा और बन्दूक का पूजन करता। वह बहुत दिनों तक साहस कर के भी बन्दूक को छूता न था। जब वह अकेला रहता था तब चुपचाप बन्दूक के पास जाकर अपनी दीनता दिखलाता था। और हाथ जोड़ कर बन्दूक से विनती कर के कहता था-हे देव! मेरे प्राण बचाओ।

मैं बकरी के मरे बच्चे को उठा कर अपने घर ले आया और उसका बहुत बढ़िया झोल बनाया। मांस के साथ मुझको नमक खाते देख कर फ़्राइडे को बड़ा आश्चर्य हुआ। इशारे के द्वारा उसने मुझ से कहा-"छिः, नमक खाते हो? उसका कैसा बुरा स्वाद होता है।" उसने मेरी देखादेखी थोड़ा सा नमक मुँह में डाल कर थूक दिया और कुल्ला करके फिर भोजन करने बैठा। मैंने भी उसको दिखला कर बे नमक का मांस मुँह में रखकर उसी की तरह थूक दिया। किन्तु इससे कोई फल न हुआ। वह किसी तरह नमक खाने को राज़ी न हुआ।

दूसरे दिन मैंने उसको कबाब खिलाया। उसके आनन्द का क्या पूछना है! उसने बार बार उमँग कर मुझे समझाया कि यह बड़ा ही अच्छा है, खाने में खूब स्वादिष्ट है। उसने कहा, "अब मैं कभी नर-मांस न खाऊँगा"। यह सुन कर मैं प्रसन्न हुआ।

तब मैंने उसको धान कूटना और आटा पीसना आदि सिखलाया। उसने बात की बात में ये सब काम सीख लिये।