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फ़्राइडे की शिक्षा।


तो वह बिना खड़खड़ाहट के न पा सकेगा, कारण यह कि मैंने खम्भों पर एक छप्पर खड़ा कर के उसे पेड़ के डालपातों से छा कर उस पर धान का पयाल बिछा दिया था। उस छप्पर के नीचे मेरा तम्बू था। जहाँ सीढ़ी लगा कर मैं बाहर निकलता था वहाँ की जगह खाली थी। उसमें भी मैने किवाड़ लगा दिये। रात को मैं सब अस्त्र-शस्त्र अपने पास रख कर सोता था।

किन्तु इतना सावधान हो कर रहने की कोई ज़रूरत न थी। क्योंकि फ्राइडे को अपेक्षा विशेष विश्वासपात्र, विनीत और निश्छल मृत्य हो सकता है, यह मैं नहीं जानता। न वह कभी क्रोध करता था, न उसके चेहरे पर कभी विरक्ति का भाव झलकता था। वह सदा प्रसन्न और सभी कामों में अग्रसर रहता था। वह मुझको अपने बाप के बराबर मानने लग गया था। प्रयोजन होने पर वह मेरे लिए प्राण तक दे सकता था।

यह देख कर मैंने समझा कि विधाता ने मानव जाति को सर्वत्र एक ही प्रकार के गुणों से भूषित किया है। मैं फ्राइडे के आचरण से अत्यन्त प्रसन्न हो कर उसको अपना कामधन्धा और भाषा सिखलाने लगा। वह अच्छा ध्यानी शिष्य था। कोई बात जब मैं उसे समझाता था या वह समझता तो वह ऐसा खुश होता था कि उसको शिक्षा देने में बड़ा ही आनन्द मिलता था। अभी मेरे दिन बड़ी खुशी से कटते थे।

दो तीन दिन बाद मैंने सोचा कि फ़्राइडे को नरमांस खाने का स्वाद भुलाने के लिए अन्य जन्तुओं का मांस खिलाना आवश्यक है। एक दिन सवेरे उसको साथ ले कर मैं