निश्चय किया कि अब हम लोगों का जहाज़ डूब जायगा ।
यद्यपि तूफ़ान कुछ कम हुआ, तो भी किसी बन्दर तक जहाज़
का पहुंचना असम्भव जान कर जहाज़ का मालिक, सहायता
के लिए,संकेत स्वरूप तोप की आवाज़ करने लगा । एक जहाज़ी
ने साहस कर के हम लोगों के सहायतार्थ एक नाव भेजी ।
अत्यन्त विपत्ति के बीच से होकर नाव हम लोगों के पास
आई । किन्तु यह जहाज़ के पार्श्व में किसी तरह स्थिर नहीं
रह सकती थी । इस कारण हम लोग भी उस नाव पर न
जा सकते थे । आख़िर उस नाव के मल्लाह हम लोगों
के प्राण बचाने के लिए अपने प्राणों की ममता छोड़ कर के
बड़ी फुरती के साथ खूब ज़ोर से पतवार चलाने लगे और
हम लोगों के माँझी ने उस नाव पर झट एक रस्सी फेंक दी ।
नाव के खेने वाले बड़े कष्ट से उस रस्सी को पकड़ कर किसी
किसी तरह अपनी नाव के जहाज़ के पास ले आये । फिर
क्या था, हम लोग बड़ी फुरती के साथ उस पर चढ़ गये ।
नाव पर चढ़ कर फिर उस नाव भेजने वाले जहाज़ के पास
उसे लौटा कर ले जाना हम लोगों के लिए असंभव था । इस
लिए हम लोग नाव को समुद्र के प्रवाह में छोड़ कर धीरे
धीरे सूखी ज़मीन की ओर ले जाने के लिए पतवार से काम
लेने लगे । प्रवाह और पतवार के ज़ोर से नाव उत्तर ओर
बह चली ।
जहाज़ छोड़ने के पन्द्रह मिनट पीछे हम लोगों का जहाज़ डूबने का उपक्रम करने लगा । तब मैं अच्छी तरह समझ गया कि जहाज़ का डूबना कैसा भयंकर दृश्य है !
जब नाविक गण कहने लगे कि जहाज़ डूब रहा है तब मारे भय के मैं आंख उठा कर उस तरफ़ देख तक नहीं सकता