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गुफा का आविष्कार।


अब तक मेरा क्या बिगाड़ा है? हम लोग भी तो जीवहिंसाजनित क्लेश का कुछ विचार न कर के उदर-तृप्ति के लिए पशु को मार डालते हैं, युद्ध में पकड़े गये शत्रुपक्ष के सैनिकों को बन्दी करके उनकी हत्या करते हैं। आत्मसमर्पण करने पर भी, क्रोध के वशीभूत होकर, शत्रु-सैन्य को मार डालते हैं। इस पर भी हम लोग अपनी सभ्यता की डींग हाँकते हैं। वे लोग भी वैसे ही अपने शत्रुओं को मार कर खाते हैं। इससे उन लोगों के मन में कई विकार उत्पन्न नहीं होता और न उन लोगों का आत्मा दुखी होता है। वे लोग इस अत्याचार को अत्याचार नहीं समझते। उनकी समझ में नहीं आता कि यह महाजघन्य कर्म है। इस विषय में ईसाई लोग भी तो कम नहीं होते। उन लोगों ने अमेरिका और आफ़्रिका के आदिम निवासियों को निर्दय भाव से मार कर गाँव के गाँव नष्ट कर दिये। क्या मैं भी उन्हीं की सी निष्ठुरता करके उनका अनुयायी बनूँगा?

इन बातों को भली भाँति सोचने से मेरा अयुक्त हत्या का उत्साह एकदम कम होगया। तब मुझे मालूम हुआ कि यह मैं सरासर अन्याय करने चला था। जब वे लोग मुझ पर आक्रमण करेंगे तब जो उचित होगा किया जायगा! इसके पूर्व उन लोगों को छेड़ना आप ही अपनी मृत्यु को बुलाना है। यदि मैं उन सबों को न मार सकूँगा तो मेरी क्या गति होगी।

इस सावधानी और सुबुद्धि का साथ धर्मभाव ने दिया। मैं जो रक्तपात के पाप से निवृत्त हुछ एतदर्थ मैंने परमेश्वर को बार बार धन्यवाद दिया। इसी तरह एक वर्ष और बीता।