देने के लिए कितने ही उपाय सोचता था किन्तु यह सोची हुई बात एक भो काम में परिणत न होती थी। होती कैसे? असम्भव बातें सोचता रहता था, कारण यह कि संकल्पित काम करने के लिए मुझे उनका सामना करना पड़ेगा। मैं अकेला और वे बीस बाईस से गिनतो में कम न रहते होंगे। मैं उनका शासन क्या करूँगा, मुझी को वे खा डालेंगे।
कभी कभी जी चाहता था कि जहाँ वे लोग आग जलाते हैं वहाँ मैं दो-तीन सेर बारूद गाड़ दूँ तो उसमें आग का संयोग होते ही उनमें से कितने ही अपने आप उड़ जायँगे। किन्तु मेरे पास बारूद बहुत कम बच रही थी। अभी उसे इस तरह ख़र्च करने को मैं राजी नहीं हुआ। अतएव इस इरादे को भी छोड़ देना पड़ा।
गुफा का आविष्कार
पहले की सोची हुई एक भी बात जब चरितार्थ न हो सकी तब मैंने सोचा कि मैं किसी जगह अपनी बन्दूक, पिस्तौल, और तलवार लेकर छिप रहूँगा और राक्षसों को देखते ही उन पर धड़ाधड़ गोलियाँ चलाऊँगा। प्रत्येक बार की गोली में दो तीन को मारूँगा, और दो एक को घायल भी करूँगा। इसके बाद उनके बीच में कूद पड़ेगा और कितनों ही पर सफ़ाई से तलवार का हाथ जमाऊँगा। इससे जो वे बीस-बाईस भी होंगे तो भी मैं उन पर विजय प्राप्त कर सकूँगा।
यही उपाय सबसे अच्छा जान पड़ा। मैं जब तब इसी उपाय को सोचता था। इस बात की चिन्ता बराबर मेरे