लोगों ने मेरी नौका नहीं देखी, देखते तो वे इस द्वीप में मनुष्य की बस्ती का अनुमान करके ज़रूर मुझे ढूँढ़ते। तब नौका ही मेरी दुर्भावना का कारण हो उठी। असभ्य लोग यदि नौका देख कर मेरा पता लगालें तो वे मुझे मार कर खाही डालेंगे। यदि उन्हें मेरा पता न भी लगेगा तो भी वे मेरी खेती-बारी को नष्ट करके और बकरों को भगाकर चले जायँगे। तब मैं खाने के बिना ही मरूँगा।
अब मेरे मन में चैतन्य हुआ। अब तक मैं साल भर के खर्च लायक अनाज उपजा कर ही यथेष्ट समझता था। भविष्य के लिए कुछ भी संचय नहीं रखता था। मानों मेरी ज़िन्दगी में कभी दुर्भिक्ष का समय आवेहीगा नहीं। मैंने अपनी इस मूर्खता के लिए अपने को धिक्कार दिया और भविष्य में अब दो-तीन साल के लिए खाद्य-सामग्री संचय करने का संकल्प किया।
मनुष्य का जीवन भगवान् की विचित्र रचना का बड़ा अनोखा नमूना है! घटना के साथ साथ मनुष्य के मानसिक भाव का बहुत कुछ परिवर्तन होता है। जो आज अच्छा लगता है वही कल बुरा मालूम होता है। जिसको कल देखने के लिए आज जी तरसता है उसीको परसों देख कर डर लगता है। मनुष्य का साथ छुट जाने से इतने दिन तक मैं उद्विग्न था, आज मनुष्य के पैर का एक मात्र चिह्न देख कर भय से पागल हो उठा हूँ। मनुष्य का जीवन ऐसा ही विषम है। अब मैंने बखुबी समझ लिया कि इस निर्जन द्वीप में अकेले ही रह कर मुझे जीवन व्यतीत करना होगा-यही ईश्वर को मंजर है। ईश्वर कब क्या करेंगे, यह जानने का सामर्थ्य मनुष्य में नहीं है। इतने दिन तक मैंने यही समझ रक्खा था