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छाग-पालन।


करना होगा जिसमें बड़े होने पर ये जंगल में न भाग जायँ या मेरी बोई हुई फसल को उजाड़ न दें। एक मनुष्य के लिए एक चरागाह का घेरा लगाना कुछ सहज काम नहीं है। किन्तु मुझे जब यह काम करना ही होगा तब बहुत सोचने से क्या होगा? मैं ऐसी उपयुक्त जगह ढूँढने लगा जहाँ अच्छी हरियाली, पीने योग्य जल और विश्राम लेने के लिए वृक्षों की छाया हो।

बहुत खोजने पर एक जगह मिल गई। उपयुक्त जगह मिल जाने से मैं बहुत खुश हुआ और दो मील के विस्तार को घेरना शुरू किया। बकरी के इने गिने तीन बच्चों के लिए दो मील चरागाह की बात सुन कर सभी लोग हँसेंगे। दो मील का घेरा देना उस समय मेरे लिए कोई बड़ी बात न थी, क्योंकि तब मेरा ऐसा ही खुच्छन्द समय था कि मैं दस मील का घेरा भी मज़े में दे सकता था। किन्तु उस समय मेरे ध्यान में यह बात न आई कि इतनी लम्बी चौड़ी जगह में बकरों को छोड़ देने पर ज़रूरत के समय उनका पकड़ना कठिन होगा। वे जैसे वन में हैं वैसे ही यहाँ भी स्वतन्त्र हो जायँगे। अन्दाज़न पचास गज़ का घेरा दे चुकने पर मेरे ध्यान में यह बात आई। तब मैंने डेढ़ सौ गज़ लम्बा और सौ गज़ चौड़ा स्थान घेरने का विचार किया। पीछे ज़रूरत होगी तो घेरे को बढ़ा कर चरागाह का क्षेत्र-फल और भी बढ़ा दूँगा।

इस समय मैंने बड़ी बुद्धिमानी का काम किया। घेरा देने में तीन महीने लगे। जब चारों ओर से जगह घेरी जा चुकी तब मैंने बकरी के बच्चों को उसके भीतर छोड़ दिया। मेरे