फिर मेरे लिए कोई विपद प्रतीक्षा कर रही हो। आखिर मैंने यही निश्चय किया कि कोई मुहाना मिल जाय तो नाव को वहाँ बाँध कर पैदल ही घर जाऊँगा।
दूसरे दिन सबेरे मैंने कोई तीन मील रास्ता किनारे किनारे चल कर एक छोटी नदी का मुहाना पाया । नाव को उसी मुहाने में ले जा कर बाँध दिया।
ऊपर पाकर मैंने देखा कि एक बार पैदल घूमते घूमते मैं जिस ओर आया था उसी तरफ़ आ गया हूँ। इससे चित्त में बड़ा ही विश्राम मिला। मैं नाव पर से केवल अपनी छतरी और बन्दूक उतार कर ले आया और वहाँ से अपने घर की ओर रवाना हुआ। साँझ को मैं अपने कुलभवन में जा पहुँचा।
छाग-पालन
मैं घेरे को लाँघ कर कुञ्जभवन के भीतर गया। वहाँ देखा, जो पदार्थ जैसे थे वैसे ही हैं। मैं पेड़ के नीचे लेटते ही गाढ़ी नींद में सो गया।
दिन भर के परिश्रम से बड़ी मीठी नींद आई। मैं उसी निद्रित अवस्था में सुनने लगा जैसे कोई मेरा नाम लेकर पुकारता हो। मैं घोर निद्रा में पड़ा था, इससे मन में समझा कि स्वप्न देख रहा हूँ। किन्तु वारंवार जब मेरा नाम ले ले कर पुकारने लगा तब मेरी गाढ़ी नींद क्रम क्रम से पतली होने लगी। आख़िर मैंने स्पष्ट सुना, कोई मुझे पुकार कर कह रहा है "राबिन, राबिन, राबिन क्रूसो! तू कहाँ गया था? अरे तू कहाँ था? अरे तू कहाँ आ पड़ा?" झट मेरी आँखें