इसके बाद मैदा चालने के लिए एक चलनी भी ज़रूर चाहिए। बिना इसके मैदे से भूसी निकालना कठिन है, और भूसी मिले हुए मैदे की रोटी खाने योग्य न होगी। चलनी का काम कैसे चलेगा? यह कठिन समस्या उपस्थित हुई। मेरे पास महीन कपड़ा भी न था। जो कपड़े थे, वे सब फट कर चिथड़े चिथड़े हो गये थे। मेरे पास बकरे की ऊन बहुतायत से थी, पर उससे कुछ बुनना या बनाना मैं न जानता था।
चलनी बनाने का उपाय सोचने में मेरे कई महीने बीत गये पर एक भी उपाय न सूझा। आख़िर मुझे यह बात याद हुई कि जहाज़ पर से जो नाविकों के कपड़े-लत्ते लाया हूँ उनमें कितने ही कपड़े जालीदार और मसलिन (मलमल) भी हैं। मैंने उन्हीं के द्वारा छोटी छोटी तीन चलनियाँ बनाईं। इन चलनियों से कई वर्ष तक मेरा काम निकला। इसके बाद मैंने क्या किया, यह आगे चलकर कहूँगा।
अब रोटी बनाने की चिन्ता हुई। मैदा तैयार होने पर किस तरह रोटी बनाऊँगा? आखिर मैंने सोचा कि रोटी पकाने का काम भी मिट्टी के बर्तन से ही लेना चाहिए। फिर क्या था, मैंने मिट्टी का तवा बना कर उसे भाग में अच्छी तरह पका लिया। इससे रोटी पकाने का काम मजे में निकल गया। मैंने धीरे धीरे रोटी पकाने का सभी सामान दुरुस्त कर लिया। चूल्हा भी बना लिया। मुझे अपने हाथ से रोटी पका कर खाने का सौभाग्य पहले पहल प्राप्त हुआ। इससे मेरे आनन्द की सीमा न रही। रोटी के सिवा मैं अब कभी कभी चावल की पिट्ठी के पुवे भी बनाने लगा।