मिट्टी मिल जाय तो उससे बर्तन बना कर धूप में सुखा लेने से सूखी चीज़ रखने का सुभीता होगा। पहले मैंने मैदा रखने के लिए खुब बड़ी बड़ी हँड़ियाँ बनाने का विचार किया।
पहले पहल अपने कार्य की विफलता, फिर बर्तन बनाने की अनभिज्ञता, और इसके बाद बेडौल बर्तन गढ़ने का वर्णन करने से पाठकगण अवश्य हँसेंगे। कोई टेढ़ा मेढ़ा, कोई बदशकल, और कोई विचित्र रूप का बर्तन बना। उस पर भी कोई फट जाता, कोई अपने भार से आप ही टूट जाता, और कोई हाथ लगते ही टूट जाता था। दो महीने तक मैं बराबर बर्तन बनाने के पीछे हैरान रहा। मैं बड़े कष्ट से मिट्टी खोद कर लाता था। उसे अच्छी तरह रौंद कर मैंने बार बार विफल प्रयत्न होकर भी अन्त में विचित्र शकल के दो बर्तन (उसका नाम क्या बतलाऊँ, वह न हाँड़ी थी न घड़ा था न कराही थी; न मालूम वह विचित्र आकार का क्या था!) बनाये। इन दोनों अज्ञातनामा बर्तनों को धूप में सुखा कर एक टोकरे में रक्खा और उसके चारों ओर पयाल का बेठन दे दिया।
यद्यपि मैं बड़ा बर्तन गढ़ने में सफलता प्राप्त न कर सका तथापि छोटे छोटे कितने ही बर्तन मैंने एक तरह से उमदा तैयार कर लिये। मलसी, रकाबी, ढकनी, कलसी, इसी किस्म के और भी छोटे मोटे बर्तन जब जो मेरे हाथ से निकल गये उन्हें गढ़ कर तैयार किया और धूप में अच्छी तरह सुखा लिया।
किन्तु इससे मेरी कमी दूर नहीं हुई। मुझे तरल पदार्थ रखने और रसोई-पानी बनाने के उपयुक्त बर्तनों की आवश्यकता थी और ख़ास कर पके हुए बर्तनों की।