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फ़सल।


कर डाला है। किन्तु अब भी कुछ समय था। क्योंकि सब धान पके नहीं थे। जिस तरह होगा बचे हुए धान की रक्षा करनी ही होगी, नहीं तो ये सस्य-घातक पक्षी धान को निःशेष कर के मुझे अन्न के बिना मार ही डालेंगे। मैं खेत से कुछ ही दूर गया हूँगा कि वे सब पक्षी साकांक्ष दृष्टि से देखने लगे कि मैं गया कि नहीं। मेरे ज़रा आँख के ओट होते ही वे झुंड के झुंड पेड़ से उतर कर फिर खेत में गिरने लगे। मैं, सब के उतर आने तक ठहर न सका। मुझे अत्यन्त क्रोध चढ़ आया। बड़ी तेज़ी से घेरे के पास जाकर मैंने उन चिड़ियों पर गोली चला दी। उनमें तीन पक्षी मरे और कुछ घायल हुए। मैंने उन तीनों को डोरी में बाँध कर खेत के तीन तरफ़ लटका दिया। इससे आशातीय उपकार हुआ। उन पक्षियों ने खेत में आना तो छोड़ा ही, साथ ही इसके जितने दिन वे तीनों मृत पक्षी टँगे रहे उतने दिन उन्होंने उस तरफ़ आने का नाम तक नहीं लिया।

दिसम्बर के अख़ीर में फसल अच्छी तरह पक गई। काटने का समय आ पहुँचा। किन्तु उसे काटे कैसे? एक हँसुए की आवश्यकता थी। जहाज़ से जो जंग लगी हुई तलवार लाया था, उसको हँसुए की तरह टेढ़ा कर लिया। मेरा खेत ही कितना था और काटने वाला भी मैं अकेला ही था। किसी तरह उसी निजरचित हँसुए से काम निकल गया। धान की बाले काट कर टोकरे में भरी। पेड़ों को खेत में ही छोड़ दिया, लेकर क्या करता। धान की बाले घर पर ले आया और लाठी से पीट कर उनके दाने छुड़ा लिये।

मेरे आनन्द और उत्साह की सीमा न रही। ईश्वर की कृपा होगी तो समय पाकर अब मेरे आहार का प्रभाव मिट