पकने का समय आया। धान के पौदे खूब हरे भरे थे किन्तु मैंने देखा कि धान के विनाशक शत्रुओं से मेरा सर्वनाश होने की सम्भावना है। बकरे और वे जङ्गली जानवर-जिनको मैंने एक किस्म का ख़रगोश मान लिया था-धान के पेड़ों की मधुरता चख कर नित्य रात रात भर मेरे ही खेत में पड़े रहते थे और जहाँ पौदे ज़रा बढ़ने लगते तहाँ उन्हें नोच कर खा डालते थे। इस से उन पेड़ों को झाड़ बाँधने का अवकाश नहीं मिलता था।
इन दुष्ट जन्तुओं से सस्यरक्षा का एकमात्र उपाय बाड़ी लगाना था। बड़ी शीघ्रता से काम करने पर भी उस छोटे से खेत को घेरने में मुझको कोई तीन सप्ताह लगे। मैं दिन में खुद उस खेत की निगरानी करता और सुविधा मिलने पर सस्य-खादक जन्तुओं को गोली से मार डालता था। रात के समय अपने कुत्ते को घेरे के भीतर जाने के मार्ग में पहरा देने के लिए बाँध देता था। उसकी बोली सुन कर कोई जानवर उसके पास से होकर खेत के भीतर जाने का साहस न कर सकता था। इस उपाय के द्वारा शीघ्र ही उन जन्तुओं से खेत की रक्षा हुई। फ़सल भी क्रमशः पकने लगी।
पशुओं के उपद्रव से तो छुटकारा मिला, पर अब पक्षियों ने उत्पात मचाना शुरू किया। धान में बाल निकलते ही भाँति भाँति के पक्षी मेरा सर्वनाश करने के लिए अवसर पाकर खेत में आने लगे। ज्योंही मैं खेत में पहुँचता था त्योंही वे सब के सब उड़ कर इधर उधर पेड़ों पर जा बैठते थे और मेरे वहाँ से चले जाने को प्रतीक्षा करते थे। खेत में जाकर मैंने देखा कि इन पक्षियों ने धान के कितने ही पौधों को नष्ट