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द्वीप का पुनर्दर्शन।


पतली डालें काट कर कोशिश की तो मालूम हुआ कि टोकरी बढ़िया बन सकती है। उसके दूसरे दिन कुल्हाड़ी लेकर गया और एक बोझ डालें काट कर सूखने के लिए घेरे के भीतर रख दी। जब वे डालें मुरझा कर काम लायक हो गईं तब उन्हें अपने घर पर ले गया। मैंने देश में अपने घर में टोकरी बनाने वालों को टोकरी बुनते देखा था और कुछ कुछ सीखा भी था। इस समय वह विद्या काम आ गई। मैंने छोटे बड़े कितने ही टोकरे बना डाले। यद्यपि वे खूबसूरत नहीं बने तथापि घर के काम चलाने लायक तो हो गये। अपनी फ़सल रखने के लिए कितने ही टोकरों को खूब गहरा बनाया। मैं गरमी के दिनों में बैठ कर अधिकतर टोकरी ही बुनता रहा।

अब भी दो तीन प्रधान वस्तुओं की कमी बनी रही। एक तो कुछ बोतलों के सिवा पतली चीज़ रखने को कोई बर्तन न था और न कोई रसोई बनाने ही का पात्र था। दूसरे तम्बाकू पीने का नल भी न था।



द्वीप का पुनर्दर्शन

मैं पहले कह पाया हूँ कि समस्त द्वीप देखने की मेरी इच्छा थी। मेरे कुञ्जभवन के पास ही समुद्र था। मैं उसी ओर समुद्र के किनारे किनारे घूमने की इच्छा से बन्दूक, कुल्हाड़ी, कुत्ते, यथेष्ट गोली-बारूद, दो डिब्बे बिस्कुट और एक बड़ो थैली में सूखे अंगूर लेकर रवाना हुआ। समुद्रतट पर जाकर पहले पश्चिम ओर की स्थल-भूमि देखी। किन्तु कुछ निश्चय नहीं कर सका कि वह किस द्वीप या महादेश