कोई औषध क्यों न हो वह बीमारी में कुछ न कुछ फ़ायदा
कर सकता है। मैं पहले थोड़ी सी तम्बाकू लेकर चबाने
लगा। तम्बाकू खाने की मुझे आदत न थी, इससे थोड़ी ही
देर में सिर घूमने लगा। इसके बाद मैंने थोड़ी सी पत्ती को
शराब में भिगो कर रक्खा। यह इसलिए कि उसे सोने के
समय पीऊँगा। आख़िर मैंने एक मलसे (मिट्टी के बर्तन)
में तम्बाकू रख कर आग पर रख दी। तम्बाकू जलने पर
उसका धुआँ ऊपर की ओर उठने लगा। मैं उस धुएँ का
गन्ध ग्रहण करने लगा। किन्तु मैं आग का उत्ताप और उस
धुएँ का उत्कट गन्ध सहन न कर सका।
इसके बाद मैंने पढ़ने की इच्छा से बाइबिल हाथ में ली, परन्तु मेरा सिर इस कदर घूम रहा था कि पढ़ न सका। पोथी खोलते ही जिस जगह दृष्टि पड़ी वहाँ लिखा हुआ था--संकट में मेरी शरण गहो, मैं तुमक संकट से उबारूँगा और तुम मेरी महिमा का कीर्तन करोगे।
यह बात मेरे जी में बहुत ठीक जँची। यह मेरे मन में एक तरह से अङ्कित होगई, किन्तु "उबारूँगा" शब्द का ठीक अर्थ उस समय मेरी समझ में न आया। अपना उद्धार होना मुझे इतना असंभव मालूम होता था कि मेरे अविश्वासी मन में यों प्रश्न उठने लगा--क्या ईश्वर यहाँ से मेरा उद्धार कर सकेंगे? यद्यपि बहुत दिनों से उद्धार होने की कोई संभावना देख नहीं पड़ती थी तथापि आज से मेरे मन में इस वाक्य पर कुछ कुछ भरोसा होने लगा।
तम्बाकू का नशा मेरे मस्तिष्क पर अपना पूर्ण अधिकार जमाने लगा। मेरी आँखें झपने लगीँ। सोने के पहले मैंने