हुई? अथवा ये जो भाँति भाँति के स्थावर, जङ्गम, मनुष्य, पशु-पक्षी आदि देख पड़ते हैं, यही क्या हैं? हम लोग पहले क्या
थे? कहाँ से किस तरह आये? वह कौन सी गुप्तशक्ति है
जो इन विचित्र पदार्थों की रचना कर के एक अद्भुत कला
दिखला रही है? मैंने मन ही मन सोचते सोचते यह निश्चय
किया कि वह शक्ति ही परमेश्वर है, वही संसार का कर्ता
हर्ता सब कुछ है। उसीके इशारे पर, उसीके भृकुटि-विलास
पर संसार के सभी काम हो रहे हैं।
यह विचार-परम्परा उत्तरोत्तर मेरे मन में अपना घर बनाने लगी। मैं चिन्ता से व्याकुल हो उठा और दीवार के सहारे धीरे धीरे अपने घर की ओर चला। घर के भीतर आ कर मैं बिछौने पर लेट रहा। तब भी मुझे नींद न आई। मैं कुरसी पर बैठ कर सोचने लगा, कल फिर बुखार चढ़ेगा। जी में अत्यन्त डर लगा। एकाएक मुझे यह बात याद हो आई कि ब्रेज़िल के लोग किसी औषध का सेवन नहीं करते। सभी रोगों में उनका एकमात्र औषध है तम्बाकू। मेरे साथ भी थोड़े से तम्बाकू के पत्ते थे।
मैं सचमुच ही भगवान् के द्वारा प्रेरित हो कर दराज़ के पास गया। दराज़ खोलने पर मुझे देह और मन का औषध एक ही साथ मिला। दराज़ से तम्बाकू और एक धर्मशास्त्र (बाइबिल) का ग्रन्थ ले कर मैं टेबल पर, जहाँ चिराग़ रक्खा था, आया। तम्बाकू से ज्वर की चिकित्सा किस तरह की जाती है, यह मैं न जानता था। और तम्बाकू की इस आसुरी चिकित्सा से मेरे घर में फ़ायदा होगा या नुक़सान, इसका भी मैं कुछ निर्णय न कर सका। तो भी मैंने अनेक उपायों से तम्बाकू सेवन करने का संकल्प किया। कैसा ही