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जाता है। हां, यह तो कहो, सुना है, महात्मा वाल्मीकि एक काव्य रच रहे हैं, रामायण?"

"हां, महाराज! उसमें श्रीमहाराज का ही तो वर्णन है।"

"कैसा वर्णन है सुनूं तो।"

"एक श्लोक तो आज ही पढ़ा है।"

"सुनाओ, पुत्रो! कैसा श्लोक है?"

लव-कुश ने गाकर सुनाया:

"सीता जी श्रीराम की प्रिया रही अत्यन्त।
सीता जी के गुणों से बढ़ा प्यार नित नित्य॥"

राम ने उसे सुनकर अनुताप से कहा, "हाय, देवी सीते! तुम ऐसी ही थीं।"

एक ऋषिकुमार ने दूर से पुकारकर कहा, "अरे, मित्रो! तुम नहीं जानते, आज आश्रम में बड़े-बड़े अतिथि आए हैं। इसी से गुरुजी ने हमें छुट्टी दे दी है।"

लव ने पूछा, "कौन-कौन आए हैं?"

कुश ने उधर देखकर कहा, "अरे, वे सब तो इधर ही आ रहे हैं।"

लव ने सबसे आगे वाले को देखकर पूछा, "पर इन सबके आगे वस्त्र लपेटे हुए ये कौन हैं?"

राम ने उनकी अभ्यर्थना में उठते हुए बताया, ठये महात्मा वसिष्ठ हैं। इनके साथ भगवती अरुन्धती और माता कौशल्या भी हैं। हाय, मुझपर तो विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा। अब कहां पापी मुंह छिपाऊं? अरे, पुत्रो! इन गुरुजनों को आगे बढ़कर सत्कारपूर्वक प्रणाम करो।"

यह सुन सब कुमार आगे बढ़े, राम एक ओर को हट गए।

कौशल्या ने कहा, "अहा, देखो, आज इन ऋषिकुमारों की छुट्टी हो गई है। बेचारे मग्न होकर खेल-कूद कर रहे हैं। अरे, इनके बीच यह कौन देवता के समान बैठा था? वहीं मेरे राम तो नहीं? गुरुदेव! आप तो राम को पहचानते हैं। लो, वे हमें देखकर खिसक गए। हाय राम!"

वसिष्ठ बोले, "रामभद्र ही हैं। महारानी! तुमने इन दोनों बालकों को भी देखा, जो उनके कन्धे पर हाथ धरे खड़े थे? लो, वे सब इधर आ रहे हैं।"

कौशल्या ने फिर पूछा, "ऋषिवर, ये दोनों बालक कौन हैं? ये तो क्षत्रिय बालक दीख पड़ते हैं, पीठ पर तरकश, हाथ में धनुष, सिर पर जटा मजीठ से रंगी धोती, मूंज की करधनी, पीपल का डंडा।"

"ये क्षत्रिय कुमार ही हैं महारानी।"

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