आ पहुंचे। विमान से उतरकर राम ने कहा, "पुत्रो! लड़ाई रोक दो।"
चन्द्रकेतु ने राम को देखकर कहा, "अरे, महाराज स्वयं ही पधारे हैं।"
लव ने भी हाथ रोककर कहा, "सच, तब चलो। पूज्य चरणों में प्रणाम करें।"
राम ने उन्हें देखकर कहा, "अरे, पुत्रो! तुम्हारे घाव तो नहीं लगा?"
चन्द्रकेतु ने उत्तर दिया, "नहीं, महाराज! अब हम मित्र हो गए।"
"बहुत अच्छा किया। तुम्हारा मित्र तो वीर-धीर दीखता है वत्स!"
लव बोला, "महाराज! वाल्मीकि-शिष्य आपका अभिवादन करता है।"
आयुष्मान होओ! आओ, कुमार! मेरी गोद में बैठो। तुम्हें देख कर तो जैसे प्राण हरे गए। तुम्हारा नाम क्या है?"
"आर्य! दास का नाम लव है। हाय, श्रीमहाराज तो मुझसे इतना प्यार करते हैं और मैं लड़ बैठा।"
"पुत्र! तुम्हारी वीरता तुम्हें ही सजती है। कुमार! तुम किस भाग्यवान के पुत्र हो?"
"महाराज! हम भगवान वाल्मीकि के पुत्र हैं।"
"तो तुम अकेले हो?"
"नहीं, महाराज! बड़े भाई आर्य कुश हैं। आर्य कुश! स्वयं महाभाग महाराजा रघुपति यहां विराजमान हैं, उन्हें अभिवादन कीजिए।"
कुश ने आगे बढ़कर कहा, "क्या यही रामायण के नायक महाराज महाभाग राम हैं? महाराज! यह वाल्मीकि-पुत्र वुश आपका अभिवादन करता है।"
"आयुष्मान् होओ! अरे, मेरे दाहिने अंग फड़कने लगे! इन बालकों को देखकर तो इन्हें छाती से लगाने को जी चाहता है। आओ, आयुष्मानो, यहां हमारी गोद में बैठो।"
"महाराज! धूप बहुत तेज है। आइए, इस साल के पेड़ की छांह में बैठिए।"
"अच्छा, पुत्र! चलो, अहा, इन बच्चों की मुखाकृति देवी सीता से कितनी मिलती है। हाय, मेरे पुत्र भी इतने बड़े हुए होते; पर अब इन बातों से क्या? हाय, देवी सीता!"
"महाराज! क्या सोच रहे हैं? यह क्या? महाराज तो रो रहे हैं!"
"कुछ नहीं, पुत्रो! कुछ नहीं। यह अभागा मन तो यों ही अधीर हो
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