पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/९०

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"उसकी गर्दन बड़ी लम्बी है।"

"पैर में चार खुर हैं।"

"भूख लगने पर घास खाता है।"

"चलो, कुमार! उसे पकड़ लें। बड़ा मजा आएगा।"

"चलो, फिर देखें, कैसा वह घोड़ा है।"

लव और कुश दोनों ही ऋषिकुमारों के साथ घोड़ा पकड़ने चल दिए। घोड़े को देखकर लव ने कहा, "हां, यही है घोड़ा। ठहरो, मैं इसे बांधता हूं। तुम उसे ढेला मार कर रोको।"

सब ऋषिकुमार शोर मचाकर बोले, "आहा हा, बड़ा मजा है।"

शोर सुनकर घोड़ा हिनहिनाया। कुछ सैनिक भी आ पहुंचे।

एक सैनिक ने ऋषिकुमार को देख कर कहा, "अरे, किसे अपनी जान भारी हुई है, जिसने अश्वमेध का घोड़ा रोका है! तुमने क्या महाप्रतापी राजा राम का नाम नहीं सुना, जिन्होंने रावण का सवंश नाश कर दिया? उनसे जो वीर लोहा ले, यह घोड़ा रोके।"

कुश ने दर्प से उतर दिया, "अरे, यह तो घमण्ड की बातें करता है। सैनिको! क्या तुम्हारे महाराज-सा कोई शूर ही नही है?"

दूसरा सैनिक बोल उठा, "अरे, ऋषिकुमार! क्यों गाल बजाते हो? कुमार चन्द्रकेतु इस घोड़े की रखवाली कर रहे हैं। वह जब तक आवें उससे पहले ही घोड़े को छोड़ दो और यहां से खिसक जाओ। इसी में भला है।"

सैनिक की यह बात सुनकर ऋषिकुमारों ने लव से कहा, "छोड़ दो कुमार। इनके चमकीले शस्त्रों से हमें डर लगता है। चलो, हम सब छलांगें मारते भाग चलें।"

लव ने हंसकर उनका विरोध करके कहा, क्या चमकीले शस्त्रों से हम डरते हैं? हमारे पास भी तो धनुष है।"

यह कहकर लव ने अपने धनुष पर डोरी चढ़ा ली और उसे टंकारने लगा। ऋपिकुमारों ने देखा कि लव को क्रोध आ गया है और उसने सैनिकों का भय नहीं किया, बाण छोड़ने लगा। सैनिक घायल होकर चिल्लाने लगे। कोलाहल सुनकर घोड़े के रखवाले कुमार चन्द्रकेतु ने उसी दिशा में अपना रथ दौड़ाया। चन्द्रकेतु ने सारथी से कहा, "आर्य सुमन्त हमारा रथ उसी वीर ऋषिकुमार के सामने ले चलिए। अरे, यह तो रघुवंशियों की भांति लड़ रहा है!"

"क्या कहने हैं। वह ऋषिकुमार महावीर है।"

"परन्तु उस अकेले पर इतनों का इकट्ठा होकर हल्ला बोलना तो ठीक नहीं।"

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