राम ने भी पूछा, "सोमपान करने वाले हमारे बहनोई ऋष्यशृंग और आर्या शान्ता विघ्न रहित तो हैं?"
अष्टावक्र ने उत्तर दिया, "हां, सब भांति कुशल-मंगल है।"
सीता ने पूछा, "हमें कभी याद भी करते हैं?"
"देवी! भगवान वसिष्ठ ने कहा है कि आप अयोनिजा भूमिसुता हैं, जो जगत का भार धारण करती है। आपके पिता विदेह जनक राजर्षि हैं और प्रतापी सूर्यकुल की आप बहू हैं, जिसके हम कुलगुरु हैं। इस प्रकार आप सब भांति भाग्यशालिनी हैं। अब आप वीरमाता बनें! यही हमारा आशीर्वाद है।"
"भगवान वसिष्ठ के हम अनुगृहीत हुए।"
"राम ने कहा, "साधुजनों के वचन सार्थक होते हैं। उनसे धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष की सिद्धि होती है।"
"भगवती अरुन्धती और शान्ता देवी ने बारम्बार यह सन्देश कहला भेजा है कि गर्भावस्था में भगवती सीता को जो कुछ साघ हो, वह बिना विलम्ब तुरन्त पूरी करना।"
राम ने उत्तर दिया, "ऐसा ही होगा।"
अष्टावक्र ने कहा, "भगवती सीता के ननदोई मुनिवर ऋष्यशृंग ने देवी के पास यह सन्देश भेजा है कि देवी के पूरे महीने चल रहे हैं, इसलिए यहां आने का कष्ट आपको नहीं दिया गया और रामभद्र को भी आपके चित्तविनोदार्थ छोड़ दिया गया है। सो, जब आपकी गोद पुत्र से सुशोभित होगी, तब हम ही आकर भेंट करेंगे।"
राम ने हर्ष और लाज से कहा, "कृपा है। भगवान वसिष्ठ की और क्या आज्ञा है?"
"महर्षि ने कहा है कि हम तो यहां यज्ञ में फंसे हैं। आप वहां शिशु राजकुमार को प्राप्त करके सन्तानवत प्रजा का पालन करिए, जिससे संसार में यशवृद्धि हो।"
"जैसी भगवान वारुणि की आज्ञा। उनसे कहना कि जनमन के अनुरंजन के लिए मैं राज्य और प्राणाधिक जानकी को भी त्यागने में आगा-पीछा न करूंगा।"
इसीलिए तो आर्यपुत्र "रघुवंशमणि कहाते हैं।"
राम ने निवेदन किया, "ऋषिवर अब आप विश्राम कीजिए।"
उन्होंने सेवक को आज्ञा दी कि मुनि को ले जाकर विधिवत् अर्चना से सत्कृत कर विश्राम कराये।
मुनिवर स्वस्ति कहकर उठ खड़े हुए। उनके जाने पर राम सीता से
६३