पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/६०

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राज्यारोहण-समारोह में भेंट-भलाई लेकर आने वाले ब्रह्मर्षियों और राजर्षियों को दान-मान से स कृत करके विदा कर दिया है? इतने दिनों तक उन सबकी प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में सम्पन्न उत्सव आज इसलिए बन्द है।"

"तो वे सब गणमान्य राज-अतिथि विदा हो गए?"

"वही क्यों, सब राजमाताओं सहित भगवती अरुन्धती और ऋषिवर वसिष्ठ भी राजधानी से चले गए।"

"कहां, कहा?"

"विभाण्डक ऋषि के पुत्र ऋष्यशृग के आश्रम को। क्या तुम नहीं जानते कि विभाण्डक मुनि के पुत्र ऋष्यशृग राजजामातृ हैं? राजनन्दिनी शान्ता उन्हीं को ब्याही हैं।"

"हां, हां, सो तो जानता हूं; परन्तु राजगुरु महर्षि वसिष्ठ और भगवती अरुन्धती तथा सब राजमाताएं इस मंगल अवसर पर राजधानी को छोड़कर महात्मा ऋष्यशृग के आश्रम में क्यों गए हैं?"

"महातपस्वी ऋष्यशृंग द्वादशवर्षीय दीर्घ सन्न कर रहे हैं। दिग्दिगन्त के वेदर्षि, देवर्षि, राजर्षि वहां आए हैं।"

"इसी से आज अयोध्या इस प्रकार सूनी-सूनी-सी लग रही है?"

"हां, भाई! बस महाराज रघुकुलमणि राम और आर्य लक्ष्मण ही राजधानी में हैं।"

"राजर्षि भरत और आर्य शत्रुघ्न कहां हैं?"

"सुना नहीं तुमने? कुम्भीनसी-पुत्र लवणासुर से युद्ध करने आर्य शत्रुघ्न मधुपुरी गए हैं और राजर्षि भरत तो राज काजरत ही हैं।"

"ठीक है-ठीक है, तो क्या हमारे महाराज रघुकुलमणि राम दीर्घ सत्र में नहीं जाएंगे?"

"कौन जाने भाई! यह ऋषिवर वसिष्ठ के वटुक शांडिल्य इधर ही आ रहे हैं। इन्हीं से पूछना चाहिए।"

इसी समय एक युवा ब्रह्मचारी. सिर पर बड़ी-सी चोटी, कन्धे पर यज्ञोपवीत, हाथ में कुश और तीर्थोदक लिए वहां आ पहुंचा। यही युवक वसिष्ठ का शिष्य शांडिल्य था। नागरिकों ने उसका अभिवादन किया, "अभिवादन करते हैं ब्रह्मचारी जी!"

ब्रह्मचारी ने दर्भ से तीर्थोदक छिड़ककर आशीर्वाद दिया, "स्वस्ति- स्वस्ति!"

नागरिक ने पूछा, "ब्रह्मचारी! कहिए, हमारे प्रियदर्शी महाराज रघुकुलमणि राम इस समय कहां हैं?"

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