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राम ने आगे बढ़ भरत से कहा, "भ्राता भरत! आओ, छाती से लगो।"

भरत राम से लिपट गए और प्रणाम किया। सीता ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा, "सुखी होओ वीर! तुम्हारी आयु बढ़े! यश बढ़े!"

लक्ष्मण ने भी सबका अभिवादन किया, "यह दास लक्ष्मण सब गुरुजनों और माताओं का अभिवादन करता है!"

सबने उन्हें आशीर्वाद देकर कहा, "जीते रहो वत्स! जीते रहो!"

भरत ने राम के पीछे खड़े वीरों को देखकर कहा, "मित्र सुग्रीव, अंगद, विभीषण, नील, हनुमान' आओ! सब मेरी छाती से लगो। आपकी सहायता के बिना महाराज लंका के संकट को कैसे पार कर सकते थे?"

"कुमार! यह सब महाराज की कृपा है कि हमें यह यश मिला।"

भरत ने राम से कहा, "महाराज! आपका यह राज्य हमारे पास धरोहर था। उसे हमने आपकी इन चरण-पादुकाओं के प्रताप से अब तक रक्षित रखा। अब आप इसे संभालिए।"

"यदि सब गुरुजन भी ऐसा ही चाहते हैं, तो ऐसा ही हो।"

वसिष्ठ बोले, "सभी की यही इच्छा है भद्र!"

भरत ने शत्रुघ्न से कहा, "प्रिय शत्रुघ्न! समस्त तीर्थों का जल और अभिषेक की सामग्री ले आओ और पौर वधुओं से कहो कि महाराज की आरती करें।"

नगर, पुर हाट-बाट, मंदिर, चतुष्पथ, राजप्रासाद सभी स्थान शंखध्वनि के पवित्र नाद से गूंज उठे। राम का राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ।

सोलह

अयोध्या के चतुष्पथ पर दो नागरिक बातें करने लगे। एक नागरिक ने दूसरे का अभिवादन करते हुए कहा, "जय श्रीराम!"

दूसरे नागरिक ने अभिवादन का उत्तर देते हुए पूछा, "अरे भाई! यह क्या बात है कि आज अयोध्या के राजमार्ग-चतुष्पथ-वीथी सुनसान-से लग रहे हैं? गलसराज रावण का सवंश निधनकर्ता हमारे महाराज श्रीराम के राज्यारोहण के उपलक्ष्य में तो निरन्तर मंगलवाद्य बजते रहने चाहिर, फिर नगर के चतुष्पथ पर आज कीर्तिगायक चारण, वन्दीगण चुप क्यों हैं?

"तुमने सुना नहीं, महाराज रघुपति ने लंका के युद्ध में मित्रवत् साथ देनेवाले वानरपति महात्मा सुग्रीव और राक्षसराज विभीषण को तथा

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