बढ़ा; पर तभी सुग्रीव उदग्र को मारकर आगे आ खड़े हुए। उन्हें देखकर रावग हंसा, "अरे, बर्बर! अपनी भ्रातृवधू तारा को छोड़ तू किस कुक्षण में यहां भरने आया? हट जा, तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो तारा को फिर विधवा होना पड़ेगा।"
सुग्रीव ने कहा, "अरे, अधर्मी! मैं अभी तुझे मारकर मित्र वधू का उद्धार करता हूं।"
उन्होंने गरजकर एक गिरिशृग रावण पर फेंका। रावण ने उसे शरों से बींधकर सुग्रीव को भी शरों से वेध डाला।
अब रावण बाधाहीन होकर लक्ष्मण के सम्मुख आया। लक्ष्मण को देखते ही वह कोधित हो उठा। उसने कहा, नराधम! इतनी देर में तू मुझे मिला। कह, कहां है इन्द्र-कार्तिकेय-राम-सुग्रीव-हनुमान? अरे, नीच! अब बोल, तेरी रक्षा कौन करेगा? अब अपनी जननी सुमित्रा और पत्नी उर्मिला का स्मरण कर ले। मैं अभी तेरा मांस मांसाहारी जीवों को दूंगा।"
उसने धनुष उठाकर अनगिनत वाण छोड़ डाले। रावण का यह प्रहार देख राम के कटक में हाहाकार मच गया। लक्ष्मण ने तनिक भी भयभीत न होकर कहा, "अरे, राक्षसराज! मेरा जन्म क्षत्रियकुल में हुआ है। मैं यम से भी नहीं डरता। तुम पुत्रशोक में अधीर हो रहे हो, थोड़ा धैर्य धारण करो, मैं तुम्हें अभी तुम्हारे पुत्र के पास पहुंचाकर शोक दूर कर दूंगा।"
दोनों में घनघोर युद्ध छिड़ गया। भांति-भांति के दिव्यास्त्र छोड़े जाने लो। रावण असंख्य बाण मारता; परन्तु लक्ष्मण सबको काट डालते। यह देख रावण ने विस्मित होकर कहा, "रे, सौमित्र! मैं तेरी प्रशंसा करता हूं। तुसमें शक्तिधर कार्तिकेय से अधिक सामर्थ्य है; परन्तु आज तू जीवित नहीं बच सकता। ले रे, मेरे पुत्र घाती! मर!"
यह कहकर रावण ने प्रबंल महाशक्ति छोड़ी। वह बिजली की भांति प्रकाश करती हुई सहस्रों बिजली की कड़कड़ाहट के साथ लक्ष्मण के हृदय में जाकर लगी। लक्ष्मण मुछित हो पृथ्वी पर गिर पड़े। वानर सैन्य में आर्तनाद फैल गया। यूथ के वानर योद्धाओं ने लक्ष्मण के शरीर को घेर लिया। लक्ष्मण को मृत समझ रावण बादल की भांति गरजता हुआ लौट गया। राक्षस सैन्य में बाजे बज उठे। राम सैन्य अस्त-व्यस्त हो शोक-विह्वल हो गया।
ग्यारह
उस कालरात्रि में राम कटक में स्थान-स्थान पर अग्निचिताएं जल
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