वीरपुत्र ने प्रस्थान कर दिया? चतुरंगिणी सेना क्या शत्रु के सम्मुख पहुंच गई?"
परन्तु दूत चुपचाप आंसू गिराता रहा।
"तू इतना शोकपूर्ण क्यों है? क्या तू कोई अमंगल वार्ता कहेगा? यदि भीषण वज्र मे राम मारा गया हो, तो मुझसे कह, मैं तुझे राजप्रासाद दूंगा।"
दूत ने कहा, "स्वामी! यह क्षुद्र प्राणी वह अमंगल वार्ता कैसे निवेदन करे?"
"अमंगल वार्ता? कौन-सी अमंगल वार्ता? निर्भय कह। शुभाशुभ तो विधाता का विधान है। मैं तुझे अभयदान देता हूं।"
"हे, राक्षसराज! अजेय युवराज यज्ञस्थल में छल से वध कर डाले गए। उनका रक-प्लावित शव यज्ञशाला में पड़ा है।"
यह सुनते ही रावण स्वर्णसिंहासन से मूर्च्छित होकर गिर पड़ा। सभासद दौड़-धूपकर उपचार करने लगे। सहसा बहुत-से राक्षस रोते, चीत्कार करते सभास्थली में घुस आए। रावण ने चैतन्य होकर पूछा, "अरे, चिररणंजय इन्द्रजीत को किसने मारा, शीघ्र कहो!"
दूत ने हाथ जोड़कर बताया, "राजेन्द्र! शोक त्यागकर धीरता से सुनिए। रामानुज लक्ष्मण ने छद्मवेश में यज्ञागार में प्रवेश करके उन्हें मार डाला। अब आप शोक को त्याग दीजिए, नहीं तो राक्षस कुलांगनाएं चक्षुजलधारा से पृथ्वी को डुबो देंगी। हे राजन्! आप महाधनुर्धारी हैं। शीघ्र पुत्रघाती दुर्मति शत्रु को भीमास्त्र से संहार कर लंका का त्रास हरिए।
सहसा स्वर्गीय प्रकाश का वहां उदय हुआ। रुद्रतेज मूर्तिमान हुआ। रावण को दूत के स्थान पर स्वयं शिव बाघाम्बर पहने, त्रिशूल लिए दीख पड़े। रावण सिंहासन से उठ हाथ जोड़कर बोला, देवाधिदेव। आज इतने दिन बाद इस दीन की सुध ली। देव ! आपके देखते-देखते लंका अनाथ हो गई।"
वह रुद्रतेज रावण के शरीर में प्रविष्ट हो गया। रावण ने गहरी सांस छोड़कर भीम गर्जन से कहा, "स्वर्णपुरी लंका के वीरो! युद्ध के साज सज़ा लो। आज मैं इस शोकज्वाला से विश्व को भस्म करूंगा।"
दस
प्रभात के पूर्वाह्न में राम अपने शिविर में सहायक वर्गसहित बैठे प्रतीक्षा कर रहे थे। वानर सैन्य युद्ध के लिए सन्नद्ध हो रहा था, दलपति
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